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Wednesday, August 29, 2012

भारतीय सेना के बगांल सैपर्स जो मिनटों में बना देते है सडक और पुल

Begभारतीय सेना के महत्वपूर्ण सैन्य संगठन बंगाल सैपर्स का इतिहास रहा है कि उन्होने राष्ट्र पर मर मिटने में कतई कोताही नही की। तभी तो देश पर मर मिटने वालो की सूची में बंगाल सैपर्स का नाम सबसे ऊपर है। चाहे युद्ध का समय हो या शंातिकाल अथवा देश पर आया प्राकृतिक संकट, हर घडी में बंगाल सैपर्स अपनी डयूटी पर मुस्तैद खडे दिखाई देते है। तकनीकी ज्ञान से ओत-प्रोत इस सैन्य संगठन ने समय समय पर अपने तकनीकी कौशल की मिशाल पेश की और देश को संकट से बचाने में मदद की।  7 नवम्बर सन 1803 में बंगाल पायनियर्स नाम से देश की रक्षा के लिए उ.प्र. के कानपुर में स्थापित इस सैन्य संगठन का नेतृत्व सबसे पहले ब्रिटिश अधिकारी टी वुड ने किया था। इस सैन्य संगठन का मुख्य कार्य अपने तकनीकी कौशल से मिनटो में युद्ध के दौरान नदी नहरो पर पुल बनाना, देखते ही देखते सडके व सुरंगें बना देना तथा अपनी जान पर खेलकर युद्ध में घायल हुए सैनिको को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना जैसे साहसिक कार्य शामिल है। इतना ही नही बंगाल सैपर्स कई बार दुगर्म हिमालय की चोटियो पर जाकर विजय पताका फैहरा चुके है। विपरीत मौसम और कठिन रास्तों पर चलकर भी दुश्मनों से लोहा लेना इन्हे बखूबी आता है। 
    इस सैन्य संगठन का 19 फरवरी 1819 में पुर्नगठन होने पर इसका नाम बदलकर बंगाल सैपर्स और मायनर्स कर दिया गया। साथ ही इसका मुख्यालय भी कानपुर से इलाहाबाद स्थानांतरित हो गया। लेकिन जब रूडकी में गंगनहर निर्माण के लिए इंजीनियरो की आवश्यकता हुई तो 1 नवम्बर 1853 को यह संगठन रूडकी आ गया। रूडकी आने के बाद भी इसके कई बार नाम परिवर्तित हुए और अन्तत: इसका नाम बंगाल इंजीनियर ग्रूप एंव केन्द्र रूडकी हो गया।  
    तीसरे मराठा युद्ध के दौरान सन 1819 में बंगाल सैपर्स के जवानो ने शौर्य पूर्ण प्रर्दशन किया। जिस पर सन् 1826 में इस सैन्य संगठन को देश का पहला बैटल आनर प्रदान किया गया। इसके बाद पहले अफगान युद्ध में जब सन् 1839 में गजनी के किले पर आक्रमण किया गया तो बंगाल सैपर्स के बहादुर जवानो ने इतिहास रचते हुए गजनी के किले को फतह कर लिया। इस कारनामे के लिए भारतीय सिपाही के रूप में पहला इण्डियन आड्र्रर आफ मैरिट सुबेदार देवी सिहं को प्रदान किया गया। अपनी बहादुरी के लिए सम्मान पाने वाले अन्य बंगाल सैपर्स जवानों में विश्राम सिंह , शेख रजब, कालू बेग, गुरदयाल सिहं, कादिर बख्श, बलदान सिहं, दयाल सिहं, शिव सहाय व गणेश के नाम प्रमुख है। 
    बंगाल इंजीनियर ग्रूप एंव केन्द्र रूडकी जिसे बीईजी भी कहा जाता है के जवानो की वीरता पूर्ण यादे यहंा के संग्रहालय में देखी जा सकती है। सन 1803 से स्थापित इस संग्रहालय में बीईजी के बहादुरी पूर्ण सफर का अवलोकन किया जा सकता है। यानि 200 वर्षो से ज्यादा के इतिहास को संजोकर रखनेे और संग्रहालय के रूप में उसे सुरक्षित रखने की मिशाल बंगाल सैपर्स ने ही कायम की है। इस संग्रहालय के बाहर देश में पहली बार रूडकी से पिरान कलियर के बीच 22 दिसम्बर सन 1851 को चलाई गई रेल के वैगन भी धरोहर के रूप में रखे हुए है। जबकि रेलवे स्टेशन के बाहर उस समय के रेल इंजन का माडल जनता के लिए दर्शनीय बनाया गया है।  
    फील्ड मार्शल अर्ल होरेशियो हरबर्ट किचनर की सिडनी में निर्मित साढे आठ फट की प्रतिमा से सुसज्जित इस संग्रहालय में यह भी उल्लेख है कि बीईजी परिसर में मौजूद युद्ध स्मारक की आधारशिला किचनर ने ही 12 नवम्बर सन 1907 में रखी थी। यह स्मारक गजनी के किले में स्थित मीनार की अनुकृति है जिसके चारो तरफ  गुम्मद, स्तम्भ, प्याज की शक्ल में ओरियंटल आर्ट कालेज लाहौर द्वारा डिजाईन किए गए है। यह युद्ध स्मारक बंगाल सैपर्स के लिए एक मन्दिर की तरह है। जहां हर सैनिक अपना सिर झुकाकर देश पर बलिदान हुए उन वीरो को याद करता है जो बंगाल सैपर्स की शान माने जाते है। बंगाल इंजीनियरिंग ग्रूप एवं केन्द्र रूडकी के स्थापना दिवस एवं अन्य राष्ट्रीय पर्वो के अवसर पर यहां के अधिकारी और सैनिक युद्ध स्मारक पर पुष्प अर्पित कर देश के अमर शहीदो को श्रद्धांजलि अर्पित करना नही भूलते। बीईजी स्थापना दिवस पर तो युद्ध स्मारक के ऊपर हेलिकाप्टर से पुष्प वर्षा तक की जाती है।   
    बंगाल सैपर्स ने फ्रांस, अल्जिरिया, लीबिया, इटली, मिस्र, सूडान, इथोपिया, जार्डन, इराक, ईरान, यमन, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन, भूटान, बर्मा, बंगलादेश, नेपाल, ताईवान, श्रीलंका, जाफना जैसे देशो मे अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया। इसी तरह सन 1948 में कश्मीर की लडाई, सन् 1962, 1965, 1971 तथा कारगिल के युद्धो में बंगाल सैपर्स के वीरता पूर्ण योगदान को कभी नही भुलाया जा सकता। बंगाल सैपर्स को मिले सम्मानो में बैटल आनर्स, थियेटर आनर्स, विक्टोरिया क्रास, आर्डर आफ मैरिट, मिल्ट्री क्रास, पदम भूषण, पदमश्री, वीर चक्र, परमवीर चक्र, शौर्य चक्र, कीर्ति चक्र, विशिष्ट सेवा मैडल, अति विशिष्ट सेवा मैडल आदि शामिल है। 
    इस सैन्य संगठन की उपलब्धियों में 12 जनवरी 1989 को उस समय चार चांद लग गए जब भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वैन्कटरमन ने बंगाल सैपर्स को रेजीमेन्ट कलर निशान प्रदान किया। सन 2003 में बीईजी के 200 वर्ष पूरे होने पर देश की तीनो सेनाओ के अध्यक्षो ने अपनी भागीदारी निभाकर इस सैन्य संगठन को गौरव प्रदान किया था। इस सैन्य सगंठन ने अपने सैनिको के बच्चों के लिए दो आर्मी स्कूल और दो ही केन्दी्रय विद्यालय खुलवाये हुए है। साथ नन्हे मुन्नो के लिए बंगाल सैपर्स स्कूल भी खोला हुआ है। ताकि यंहा के बच्चो को पढाई के लिए इधर उधर न भटकना पडे। बंगाल सैपर्स रूडकी के बीच से होकर बह रही ऐतिहासिक गंगनहर का उपयोग जल प्रषिक्षण के लिए करते है। 
    इस सैन्य संगठन की उपलब्धियो में वर्ष 1971 भी शामिल है । 1971 में बंगाल सैपर्स की दो रेजीमेन्टो ने मधुमती नदी पर 1384 फीट लम्बा तैरता हुआ पुल बनाकर अनूठा इतिहास रच दिया था। जिसकी याद अभी तक ताजा है। सैन्य कौशल, देश सेवा की अनूठी मिशाल बीईजी में ऐतिहासिक पवेलियन ग्राउंड, फौजेश्वर मंदिर, संग्रहालय व बीईजी मुख्यालय दर्शनीय है। खेल के क्षेत्र में जहां बंगाल सैपर्स ने अभी तक कई अर्जुन अवार्ड जीते है। वही पर्वतारोही, तैराकी, कुश्ती व अन्य खेलो में भी बंगाल सैपर्स ने उपलब्धियों के झण्डे गाडे है। -श्रीगोपालनारसन, रूडकी
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