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Thursday, December 2, 2021

योग के आठ अंगो का फल

 योग के आठ अंगो का फल
 यम-नियम आदि योग के आठ अंगो का फल क्या होता है, :―
 यमो का फल 
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१. अहिंसा–
अहिंसा धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति के मन से समस्त प्राणियों के प्रति वैर भाव (द्वेष) छूट जाता है, तथा उस अहिंसक के सत्सङ्ग एवं उपदेशानुसार आचरण करने से अन्य व्यक्तियों का भी अपनी अपनी योग्यतानुसार वैर-भाव छूट जाता है।

२. सत्य–
जब मनुष्य निश्चय करके मन, वाणी तथा शरीर से सत्य को ही मानता, बोलता तथा करता है तो वह जिन-जिन उत्तम कार्यों को करना चाहता है, वे सब सफल होते हैं।

३. अस्तेय–
मन, वाणी तथा शरीर से चोरी छोड़ देने वाला व्यक्ति, अन्य व्यक्तियों का विश्वासपात्र और श्रद्धेय बन जाता है। ऐसे व्यक्ति को आध्यात्मिक एवं भौतिक उत्तम गुणों व उत्तम पदार्थों की प्राप्ति होती है।

४. ब्रह्मचर्य–
मन, वचन तथा शरीर से संयम करके, ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले व्यक्ति को, शारीरिक तथा बौद्धिक बल की प्राप्ति होती है।

५. अपरिग्रह–
अपरिग्रह धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति में आत्मा के स्वरुप को जानने की इच्छा उत्पन्न होती है, अर्थात् उसके मन में 'मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, कहाँ जाऊँगा, मुझे क्या करना चाहिये, मेरा क्या सामर्थ्य है', इत्यादि प्रश्न उत्पन्न होते हैं।

    अब नियमों का फल
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१. शौच–
बार-बार शुद्धि करने पर भी जब साधक व्यक्ति को अपना शरीर गन्दा ही प्रतीत होता है तो उसकी अपने शरीर के प्रति आसक्ति नहीं रहती और वह दूसरे व्यक्ति के शरीर के साथ अपने शरीर का सम्पर्क नहीं करता।
आन्तरिक शुद्धि से साधना की बुद्धि बढ़ती है, मन एकाग्र तथा प्रसन्न रहता है, इन्द्रियों पर नियन्त्रण होता है तथा वह आत्मा-परमात्मा को जानने का सामर्थ्य भी प्राप्त कर लेता है।

२. संतोष–
संतोष को धारण करने पर व्यक्ति की विषय भोगों को भोगने की इच्छा नष्ट हो जाती है और उसको शांति रुपी विशेष सुख की अनुभूति होती है।

३. तप–
तपस्या का अनुष्ठान करने वाले व्यक्ति का शरीर, मन तथा इन्द्रियाँ, बलवान तथा दृढ़ हो जाती हैं तथा वे उस तपस्वी के अधिकार में आ जाती हैं।

४. स्वाध्याय―
स्वाध्याय करने वाले व्यक्ति की आध्यात्मिक पथ पर चलने की श्रद्धा, रुचि बढ़ती है तथा वह ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभावों को अच्छी प्रकार जानकर ईश्वर के साथ सम्बन्ध भी जोड़ लेता है।

५. ईश्वर–प्रणिधान–
ईश्वर को अपने अन्दर–बाहर उपस्थित मानकर तथा ईश्वर मेरे को देख, सुन, जान रहा है, ऐसा समझने वाले व्यक्ति की समाधि शीघ्र ही लग जाती है।

  योग के शेष अङ्गों का फल।
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    ३. आसन―
आसन का अच्छा अभ्यास हो जाने पर योगाभ्यासी को उपासना काल में तथा व्यवहार काल में सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास आदि द्वन्द्व कम सताते हैं, तथा योगाभ्यास की आगे की क्रियाओं को करने में सरलता होती है।

     ५. प्राणायाम―
प्राणायाम करने वाले व्यक्ति का अज्ञान निरन्तर नष्ट होता जाता है तथा ज्ञान की वृद्धि होती है। स्मृति-शक्ति तथा मन की एकाग्रता में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। वह रोग-रहित होकर उत्तम स्वास्थय को प्राप्त होता है।

    ६. प्रत्याहार–
प्रत्याहार की सिद्धि होने से योगाभ्यासी का इन्द्रियों पर अच्छा नियन्त्रण हो जाता है अर्थात् वह अपने मन को जहाँ और जिस विषय में लगाना चाहता है, लगा लेता है तथा जिस विषय से मन को हटाना चाहता है, हटा लेता है।

    ६. धारणा―
मन को एक ही स्थान पर स्थिर करने के अभ्यास से तथा ईश्वर विषयक गुण-कर्म-स्वभावों का चिन्तन करने से (ध्यान में) दृढ़ता आती है, अर्थात् ईश्वर विषयक ध्यान शीघ्र नहीं टूटता। यदि टूट भी जाय तो दोबारा सरलतापूर्वक किया जा सकता है।

   ७. ध्यान–
ध्यान का निरंतर अभ्यास करते रहने से समाधि की प्राप्ति होती है तथा उपासक, व्यवहार सम्बन्धी समस्त कार्यों को दृढ़तापूर्वक, सरलता से सम्पन्न कर लेता है।

   ८. समाधि―
समाधि का फल है ईश्वर का साक्षात्कार होना। समाधि अवस्था में साधक समस्त भय, चिन्ता, बन्धन आदि दु:खों से छूटकर ईश्वर के आनन्द की अनुभूति करता है तथा ईश्वर से समाधि काल में ज्ञान, बल, उत्साह, निर्भयता, स्वतन्त्रता आदि की प्राप्ति करता है। इसी प्रकार बारम्बार समाधि लगाकर अपने मन पर जन्म जन्मान्तर के राग-द्वेष आदि अविद्या के संस्कारों को दग्धबीजभाव अवस्था में पहुंचाकर (नष्ट करके) मुक्ति पद को प्राप्त कर लेता है।
  
 योगश्चित्तवृत्तिनिरोध: !

  योग: = समाधि (है) चित्तवृतिनिरोध: = मन के विचारों को रोक देना !

      योग दर्शन में चित्त और मन एक ही वस्तु है, और वह जड़ वस्तु है। इस चित्त में विभिन्न प्रकार के चित्र बनते रहते है। ये चित्र सांसारिक विषयों से सम्बंधित होते हैं, इन्हीं को चित्त की वृत्तियाँ कहते है। ये वृतियाँ जीवात्मा ही अपनी इच्छा से बनाता है, और स्वयं ही अपनी इच्छा और प्रयत्न से रोक भी लेता है। जब वह बाह्य और आभ्यंतर दोनों प्रकार के विचारों को रोक देता है तो इस अवस्था को  "  चित्तवृतिनिरोध " कहते हैं।  यही समाधि कहलाती है।  समाधि दो प्रकार की होती है, एक सम्प्रज्ञात और दूसरी असम्प्रज्ञात।  ईश्वर का साक्षात्कार असम्प्रज्ञात समाधि में होता है। सम्प्रज्ञात में नहीं।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जानसठ का निरीक्षण कर तैयारियों का जायजा लिया

 *मुजफ्फरनगर 1 दिसंबर 2021* मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ महावीर सिंह फौजदार ने जानकारी देते हुए बताया कि जनपद में आपात प्रसूति एवं आवश्यक प्रसूति सेवाओं को गुणवत्ता परक बनाने के उद्देश्य एवं मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए  प्रथम संदर्भ इकाइयों के रूप में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों का सुदृढ़ीकरण किया जा रहा है,जिसके अंतर्गत जटिल आने वाले प्रसवो का निदान संस्थागत प्रसव के द्वारा बेहतर किया जा सके। 

मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि जनपद में जिला महिला चिकित्सालय के साथ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खतौली में प्रथम संदर्भन इकाई (एफ आर यू)  संचालित की जा रही है उन्होंने बताया कि शीघ्र ही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जानसठ का भी सुदृढ़ीकरण करते हुए वहां पर प्रथम संदर्भन इकाई के रूप में तैयार किया जा रहा है जिससे शीघ्र ही वहां पर सामान्य प्रसव के साथ-साथ जटिल व सिजेरियन प्रसव कराए जा सकेंगे इसी की तैयारी को लेकर उन्होंने आज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निरीक्षण कर व्यवस्थाओं का जायजा लिया तथा वहां के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी तथा अन्य चिकित्सा अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए। उन्होंने बताया कि संभवत एक सप्ताह के अंदर एफ आर यू यूनिट आरंभ कर दी जाएगी।

निरीक्षण के दौरान उनके साथ चिकित्सा अधीक्षक डॉ अशोक कुमार महिला चिकित्सा अधिकारी डॉ शिखा गुप्ता एवं डॉक्टर शैला परवीन उपस्थित रही।