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Tuesday, September 18, 2012

जिंदल समूह को आवंटित कोयला खदान का आवंटन रद्द…

कोयला ब्लॉक आवंटन में गड़बडि़यों के खिलाफ कार्रवाई जारी रखते हुए सरकार ने सोमवार को जिंदल समूह को आवंटित कोयला खदान का आवंटन रद्द कर दिया. यह गौरांगडीह एबीसी कोल ब्लॉक सज्जन जिंदल की कंपनी जेएसडब्ल्यू स्टील को संयुक्त रूप से दिया गया था, जो कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल के भाई हैं.
इंटर मिनिस्ट्रियल ग्रुप (आईएमजी) की सिफारिश पर दो अन्य कोल ब्लॉक के लिए हिंडाल्को और टाटा पावर द्वारा दी गई बैंक गारंटी में कटौती करने का भी फैसला किया गया है. इन दोनों ब्लॉक को तय समय पर डवलप नहीं किया गया था. हिंडाल्को आदित्य बिड़ला ग्रुप की कंपनी है.
आईएमजी ने शुक्रवार को दी अपनी रिपोर्ट में गौरांगडीह एबीसी का आवंटन रद्द करने की सिफारिश की थी. यह खदान जेएसडब्ल्यू और हिमाचल ईएमटीए को 2009 में अलॉट की गई थी. इसे मिलाकर अब तक पांच खदानों का आवंटन रद्द किया जा चुका है. आईएमजी सात खदानों का अलॉटमेंट कैंसल करने की सिफारिश कर चुका है. आईएमजी की बैठक मंगलवार को भी होगी, जिसमें छह अन्य मामलों पर विचार किया जाएगा.
शिंदे ने भी की थी एक कंपनी की सिफारिश
इधर गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी माना है कि उन्होंने एक कोयला खदान एक पावर कंपनी को अलॉट करने के लिए 2007 में प्रधानमंत्री से सिफारिश की थी. शिंदे उस वक्त बिजली मंत्री थे. हालांकि इस कंपनी को खदान नहीं मिली क्योंकि उसने गलत दावे किए थे और वह शर्तें पूरी नहीं कर पाई थी. वह उड़ीसा में थर्मल पावर प्लांट लगाना चाहती थी.
वहीं, अंतर मंत्रालयी समूह (आईएमजी) छह और कोल ब्लॉकों का आवंटन के भाग्य का फैसला आज कर सकता है. इस संबंध में आईएमजी की बैठक चल रही है. आईएमजी अब तक सात कोल ब्लॉकों का आवंटन रद्द करने की सिफारिश कोयला मंत्रालय से कर चुका है. सीबीआई भी इस हफ्ते से कोल ब्लॉक आवंटन में अनियमितता से संबंधित पांच मामलों में आरोपी लोगों से पूछताछ शुरू करेगी.
पिछले हफ्ते आईएमजी ने हिमाचल आईएमटीए पॉवर, कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल के भाई सज्जन जिंदल के जेएसडब्ल्यू स्टील, केंद्रीय पर्यटन मंत्री सुबोध कांत सहाय के भाई की कंपनी एसकेएस इस्पात एंड पावर और भूषण स्टील के कोल आवंटन को रद्द करने की सिफारिश की थी. इसके अलावा आईएमजी ने उषा मार्टिन, टाटा स्पंज, भूषण पावर और गुप्ता मेटालिक्स एंड पावर के कोल ब्लॉक की बैंक गारंटी जब्त और कटौती करने की भी सिफारिश की थी.
सीबीआई इस हफ्ते उन कंपनियों के निदेशकों से पूछताछ शुरू कर सकती है जिनके खिलाफ कोयला ब्लॉक आवंटन में कथित अनियमितताओं के सिलसिले में मामले दर्ज किए गए थे. सूत्रों ने कहा कि सीबीआई ने पिछले हफ्ते मारे गये छापों के दौरान जब्त कंप्यूटरों की हार्ड डिस्क से मिले डाटा और अन्य अहम दस्तावेजों की पड़ताल की है और उन लोगों के नाम तय किए हैं, जिन्हें पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है. सूत्रों के अनुसार पहले बैच में एजेंसी उन आरोपियों को बुला सकती है जिनके नाम जेएलडी यवतमाल एनर्जी लिमिटेड, जेएएस इन्फ्रास्ट्रक्चर और एएमआर आयरन और स्टील के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में हैं.
सीबीआई ने तीनों कंपनियों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकियों में कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य विजय दरडा, उनके बेटे देवेंद्र के साथ अन्य पूर्व और मौजूदा निदेशकों के नाम दर्ज किये हैं, जिनमें विजय के भाई राजेंद्र दरडा के साथ मनोज जायसवाल, अनंत जायसवाल और अभिषेक जायसवाल शामिल हैं. हालांकि सूत्रों ने कहा कि दरडा से बाद में पूछताछ हो सकती है. दरडा बंधुओं और जायसवाल ने कोयला ब्लॉक आवंटन में किसी तरह की अनियमितता के आरोपों को खारिज किया है.
sabhar mediadarbar.com

1 comment:

  1. आरटीआई का इस्तेमाल, मिसयूज कैसे?
    भ्रष्ट अफसरों और नेताओं के साथ-साथ देश के लगभग सभी सूचना आयुक्त यह कहते मिल जाएंगे कि सूचना के अधिकार कानून का इस्तेमाल ठीक लोग नहीं कर रहे हैं। लोग इसका `मिसयूज´ कर रहे हैं। उन्हें यह कौन समझाए कि कानून बनाते वक्त संसद ने इसमें सिर्फ अच्छे लोगों के इस्तेमाल के लिए की शर्त नहीं डाली है। इतना ही नहीं कई सूचना आयुक्त जिनमें केंद्रीय सूचना आयुक्त एम एम अंसारी सबसे आगे हैं, यह कहते घूमते हैं कि इस अधिकार से लोग अपने निजी मामले सुलझाने में लगे हैं। अंसारी साहब से यह बात कई बार पूछी गई है कि क्या सूचना का अधिकार सिर्फ देश सेवा में लगे लोगों को ही मिलेगा। क्या एक आदमी जो रिश्वत नहीं देता उसे यह जानने का हक़ नहीं है कि उसके पासपोर्ट आवेदन का क्या हुआ? क्या किसी गरीब को यह जानने का हक़ नहीं है कि उसके हिस्से का राशन कहां जा रहा है? क्या किसी सरकारी कर्मचारी को यह जानने का हक़ नहीं है कि उसका ट्रांसफर क्यों किया गया, उसका प्रमोशन क्यों नहीं हुआ? जिस व्यवस्था में लोगों को मोटरसाइकिल की आर.सी. तक बिना रिश्वत दिए न मिलती हो वहां लोगों से उम्मीद की जाए कि सरकार के बड़े-बड़े कामों के बारे में सूचना के अधिकार का इस्तेमाल शुरू करें, ऐसी सोच पीड़ा देती है। जो सूचना आयुक्त इस तरह के मामलों को सूचना के अधिकार के इस्तेमाल में कमी के रूप में देखते हैं वे ही इस कानून की भ्रूण हत्या के ज़िम्मेदार हैं।

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