नई दिल्ली. तृणमूल कांग्रेस ने किराना (रिटेल) क्षेत्र में 51 फीसदी एफडीआई की मंजूरी देने, डीजल पांच रुपये प्रति लीटर महंगा करने और लोगों को साल में सिर्फ 6 रियायती सिलेंडर देने की समय सीमा तय करने के विरोध में अपने मंत्रियों के इस्तीफे का ऐलान और अब प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांग कर (पढि़ए पूरी खबर और अब तक का हर अपडेट) सरकार को मुसीबत में डाल दिया है। ज्यादातर राज्य सरकारें, खास कर गैर कांग्रेस शासित राज्य, भी रिटेल में एफडीआई के विरोध में हैं (पढि़ए : राज्यों का रुख)। लेकिन, केंद्र सरकार इन फैसलों को आर्थिक सुधार के लिए जरूरी मान रही है और इन पर अडिग है। वह तृणमूल को मनाने की कोशिशें भी जारी रखे हुए हैं। पर अगर ममता नहीं मानीं तो क्या होगा? सरकार के पास क्या विकल्प हैं? इन्हीं सवालों पर एक नजर..
सरकार का समीकरण: लोकसभा में कुल 545 में से कांग्रेस के 205 सांसद हैं। तृणमूल कांग्रेस के 19 सदस्य सरकार को समर्थन नहीं देते हैं तो डीएमके के 18, राष्ट्रीय लोकदल के पांच, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नौ, नेशनल कानफ्रेंस के तीन और कुछ अन्य पार्टियों के सांसद ही यूपीए में बचेंगे। सरकार को बाहर से समर्थन देने वालों में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल सेक्युलर के 50 सांसद हैं। सरकार में रहने के लिए 272 सांसदों का समर्थन जरूरी है। इस तरह फिलहाल सरकार को खतरा नहीं लगता।
1. फैसले वापस लें : सरकार चाहे तो सारे फैसले वापस ले सकती है, लेकिन यह कांग्रेस और यूपीए सरकार दोनों के लिए बड़ा झटका होगा। ऐसे में इसकी संभावना कम ही है। आंशिक रोलबैक से भी वह ममता को सरकार के साथ बनाए रख सकती है। लेकिन अभी तक सरकार ने इसके कोई संकेत नहीं दिए हैं।
2. सपा, बसपा साथ दें : मुलायम मौके पर सरकार के संकटमोचक रहे हैं। उन पर फिर दांव है। मगर ऐसे में भी सरकार को डीजल के दाम कम करने और गैस सिलेंडर की सीमा बढ़ाने का फैसला लेना पड़ सकता है। अगर कांग्रेस सरकार में आने के लिए सपा को राजी कर लेती है तो मनमोहन सिंह की स्थिति पूरी तरह से मजबूत हो जाएगी। संभव है कि बेहतर 'डील' (जैसे रेल मंत्रालय आदि) मिलने पर मुलायम सरकार में शामिल हो जाएं।
3. ऐसे ही चले सरकार: सपा और बसपा के बाहरी समर्थन से अल्पमत की सरकार चलाते रहने का भी एक विकल्प हो सकता है। समाजवादी पार्टी के पास 22 और बहुजन समाज पार्टी के 21 सांसद हैं। समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने यूपीए के पहले दौर में भी वामपंथियों के समर्थन वापिस लेने के बादल मनमोहन सिंह सरकार को टिके रहने में मदद की थी। बहुजन समाज पार्टी के नेता कह चुके हैं कि सरकार के गिरने से उन्हें कोई राजनीतिक फायदा नहीं होने वाला। ऐसे में मनमोहन सरकार इस बात की उम्मीद कर सकती है कि जरूरत पड़ने पर सदन में सपा, बसपा उसका साथ देंगी।
4. मध्यावधि चुनाव: कांग्रेस अभी मध्यावधि चुनाव नहीं चाहती। लेकिन अगर भाजपा, तृणमूल के साथ-साथ सपा-बसपा भी ठान लें तो उसे मध्यावधि चुनाव के लिए तैयार होना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में सभी पार्टियों को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास जाकर संसद का विशेष सत्र बुलवाने की गुजारिश करनी होगी। राष्ट्रपति को तय करना होगा कि अल्पमत सरकार को संसद में बहुमत सिद्ध करने को कहा जाए या नहीं। अगर कहते हैं और सरकार बहुमत सिद्ध नहीं कर पाती है तो मध्यावधि चुनाव का रास्ता खुल जाएगा।
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