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Wednesday, September 19, 2012

जैमर तो खरीद नहीं पाए, चलें हैं जेल हाइटेक करने

लखनऊ। प्रदेश के जेल मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया इन दिनों प्रदेश की जेलों को विकसित और हाइटेक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसी कवायद में प्रदेश की कई जेलों को हाइटेक किया जा रहा है। लेकिन आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि कई सालों से उत्तर प्रदेश की जेलों में जैमर नहीं लग सका है। हर बार पैसा आता है, जैमर खरीदने की कवायद भी तेज होती है, प्‍लानिंग भी जमकर होती है लेकिन ऐन मौके पर कोई न कोई अडंगा लग जाता है। योजना धरी की धरी रह जाती है
इसी क्रम में इस बार भी जैमर खरीदने के लिए शासन द्वारा स्वीकृत करीब 8 करोड़ रुपए की धनराशि पीएलए में जमा हो चुकी है। सूत्रों के अनुसार माफिया और जेल कर्मचारियों व अधिकारियों के बीच गठजोड़ इसकी प्रमुख वजह है। जेल से फोन कराने की कमाई इतनी है कि जैमर खुद अफसर ही नहीं लगवाना चाहते। नतीजतन ऐसी-ऐसी तकनीकी समस्याएं पेश की जाती हैं कि आखिरकार जैमर की खरीद नहीं हो पाती। उधर इस संबंध में उत्तर प्रदेश शासन के आला अफसर कुछ बोलने को राजी नहीं होते। सूत्रों के अनुसार जैमर न लगाने के लिए जेलों में बंद कुछ बड़े माफियाओं ने सत्ता में अपने सम्पर्क का लाभ उठाकर योजना को लंबित करा दिया।जेलों में माफियाओं की धमक का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में इलाहाबाद की नैनी जेल के अधिकारियों ने शासन को पत्र लिखकर कुछ शातिर कैदियों को शिफ्ट करने की मांग की। एक जेलर ने तो यहां तक लिखा कि उन्हें नैनी जेल से हटा दिया जाए। यह वही जेल है, जहां कुछ समय पहले तक सपा विधायक विजय मिश्रा बंद थे। उनकी रिहाई के दौरान जेलकर्मियों द्वारा बख्‍शीश लिए जाने की घटना से प्रदेश के जेल प्रशासन की काफी भद़द पिटी थी। इन्हीं विजय मिश्रा के कई दिनों तक लखनऊ के बलरामपुर अस्पताल में भर्ती रहने की खबरें आती रहीं और तो और इन्हें तो लखनऊ में ही एक मंदिर में दर्शन करते भी देखा गया था। यही नहीं विजय मिश्रा और बाहुबली विधायक मुख्‍तार अंसारी को मुख्‍यमंत्री के यहां कार्यक्रम में देखा गया। जेल में वर्चस्‍व का दूसरा उदाहरण बरेली जेल में बंद माफिया डॉन बबलू श्रीवास्‍तव हैं।पिछले दिनों लखनऊ की एक अदालत ने बबलू को जेल से प्रदेश में गैंग ऑपरेट करने अपहरण, फिरौती आदि का दोषी पाया और सात साल की सजा सुनाई है। इसी तरह गोरखपुर जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे अमर‍मणि त्रिपाठी के ऊपर भी जेल के अस्‍पताल के गलत इस्‍तेमाल के आरोप लगते रहे हैं। सिर्फ मोबाइल के इस्तेमाल की बात की जाए तो खुद पुलिस ने कई ऐसे मामले खोले हैं, जिनमें पता चला कि घटना को अंजाम देने का आदेश जेल से ही आया। पुलिस सर्विलांस टीम के एक वरिष्ठ सदस्य बताते हें कि प्रदेश की शायद ही कोई जेल हो जहां, मोबाइल का इस्तेमाल न हो रहा हो। अगर लोकेशन पर गौर किया जाए तो जेलों से होने वाली कॉल्स की जानकारी आसानी से मिल जाएगी।वैसे जेलों में मोबाइल पर होने वाली बातचीत पर अंकुश लगाने के लिए पिछले साल सरकार ने जैमर लगाने की योजना बनाई। पहले चरण में 20 जेलों में जैमर लगाये जाने थे। सरकार ने पांच केन्द्रीय कारागार समेत 2000 से अधिक बंदियों की क्षमता वाली जेलों में जैमर लगाने के लिए सुरक्षा शाखा को धनराशि मुहैया भी करा दी। लेकिन जैमर नहीं खरीदा जा सकासूत्रों के अनुसार इन जेलों के शीर्ष अधिकारियों ने शासन को तर्क दिया कि इस समय जितने भी खरीदने लायक जैमर हैं, उनकी रेंज 50 से 60 मीटर ही रहती है। सिर्फ एक जैमर से पूरी जेल की फ्रीक्वेंसी लॉक नहीं हो सकती और एक ही जेल में ज्यादा जैमर लगाने से खर्च काफी पड़ रहा था। इसलिए उपयुक्त जैमर नहीं मिलने के कारण उसकी खरीद नहीं हो सकी।
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