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Tuesday, November 20, 2012

ठाकरे की राजनीतिक विरासत को हथियाने की कोशिशें तेज

मुंबई.  शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को हथियाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। जानकारों का दावा है कि मनसे क ीओर से शिवसेना को कमजोर करने की योजना पर अमल शुरू कर दिया गया है जबकि राकांपा ने भी इस मामले में तेजी से कदम उठाने का फैसला किया है।
सोची समझी योजना के तहत प्रचार
शिवसेना सूत्रों के अनुसार रविवार को बाल ठाकरे की अंतिम यात्रा के दौरान बाल ठाकरे के बेटे उद्धव व मनसे प्रमुख राज ठाकरे से जुड़े एक विवाद को सोची समझी योजना के तहत प्रचारित किया जा रहा है। एक अंगरेजी अखबार में छपी खबर के अनुसार राज से कहा गया कि मातोश्री से अर्थी लाते वक्त कंधा न दें।
इसी से नाराज राज अंतिम यात्रा में कुछ देर पैदल चले व बाद में सीधे शिवाजी पार्क पहुंचे। इससे पहले रविवार को फैलाई गई खबरों में कहा गया था कि राज बालासाहेब के पार्थिव के साथ शिवसेना भवन नहीं जाना चाहते थे इसीलिए वे अंतिम यात्रा के समय रथ पर नहीं चढ़े।
उद्धव को कमजोर करने की साजिश
मातोश्री से जुड़े सूत्रों ने सोमवार को भास्कर से कहा कि इस तरह की खबरें बेबुनियाद हैं। सोच समझकर ये खबरें उद्धव को कमजोर करने के लिए फैलाई जा रही हैं। रविवार सुबह मातोश्री में मौजूद एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि राज की तरफ से अर्थी को कंधा देने पर कोई विवाद नहीं था।
शिवसेना व भाजपा के कई नेताओं ने बालासाहेब को कंधा दिया था इसलिए राज को मना करने का कोई सवाल नहीं था। भाजपा नेताओं के अनुसार इस तरह की खबरें उद्धव को बदनाम करने व राज को शिवसैनिकों व आम लोगों की सहानुभूति दिलाने के लिए फैलाई जा रही हैं। वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है। अगर राज को कंधा देने से वंचित करना होता तो अंत्येष्टि के वक्त उद्धव ने राज को साथ नहीं लिया होता।
मनसे हुई सक्रिय
शिवसेना भाजपा गठबंधन के नेता मानते हैं कि राजनीतिक तौर पर राज और उद्धव के साथ आने की संभावनाएं बाल ठाकरे के जाने के बाद बेहद कम हो गई हैं। इसलिए अब राज की तरफ से शिवसेना को कमजोर करने व मनसे को प्रभावी बनाने की जबरदस्त कोशिश की जाएगी। लगता है कि राज के कुछ करीबी इस अभियान में सक्रिय हो गए हैं। वे मानते हैं कि राज के पास बालासाहेब जैसी वक्तृत्व शैली है और शिवसेना के नेतृत्व का पूरा अधिकार उन्हें ही है।
राकांपा भी ताक में
मनसे के साथ साथ राकांपा के नेताओं की भी शिवसेना की विरासत पर नजर है। केंद्रीय कृषिमंत्री शरद पवार से बाल ठाकरे के निजी रिश्ते भले ही करीबी रहे हों लेकिन राजनीतिक तौर पर शिवसेना को कमजोर करने में उन्होंने कोई कसर नहीं रखी।
जब राज ने शिवसेना छोड़कर मनसे बनाई थी तब यह बात सबको पता थी कि राज को पवार से बड़े पैमाने पर आर्थिक मदद मिली है। माना जाता है कि राज को पवार ने ही बगावत के लिए उकसाया था। कुछ महीने पहले शिवसेना के एक सांसद आनंद परांजपे को शिवसेना से अलग करने में भी पवार की सक्रिय भूमिका रही है।
राकांपा की तरफ से ठाकरे को  आदरांजलि देने के लिए प्रमुख अखबारों में लाखों रुपए खर्च करके विज्ञापन जारी किए गए। माना जा रहा है कि अब राकांपा की तरफ से शिवसेना के सांसदों व विधायकों को आकर्षित करने का काम जोरशोर से किया जाएगा। इसके अलावा हर जिले में शिवसैनिकों को राकांपा से जोडऩे का अभियान भी छेड़ा जाएगा। साफ है कि उद्धव के सामने पार्टी को मजबूत रखने की चुनौती है और जल्दी ही उन्हें इस परीक्षा से गुजरना होगा।
sabhar dainikbhaskar.com

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