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Thursday, November 22, 2012

कार्तिक गंगा स्नान पर दूषित जल में करना पडेगा श्रद्धालुओं को स्नान

प्रदूषण की भेंट चढती शुक्रताल में गंगा नदी

प्रदूषण के कारण जनपद की मोती झील ने खोया अपना अस्तित्व, काली नदी भी चढ रही प्रदूषण की भेंट

सचिन धीमान
मुजफ्फरनगर।
कार्तिक गंगा स्नान मेले का आयोजन प्रत्येक वर्षों की भांति इस वर्ष भी जिला पंचायत मुजफ्फरनगर के तत्वाधान में 22 नवम्बर से शुरू होने जा रहा है परंतु इस वर्ष भी दूषित गंगा के जल में ही श्रद्धालुओं को डूबकी लगानी पडेगी। शुक्रताल में गंगा भयंकर प्रदूषण की चपेट में हैं। पतित पावनी गंगा को लेकर प्रदूषण मुक्त कराने के लिए देश के अंदर जमकर हंगामे होेते रहे और प्रदूषण कम करने के नाम पर अरबों की योजनाएं बनीं लेकिन एक भी योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया गया और आज सदियों से सुप्रसिद्ध शुक्रताल में गंगा नदी की स्थिति यह है कि आज यहां लोग आने से कतराने लगे हैं। अब लगने लगा है कि आज यहां गंगा नदी को इस प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए एक और भगीरथ की जरूरत है। वहीं दूसरी ओर साधु सन्तों की माने तो शुक्रताल में गंगा में स्नान करने के लिए घाट कच्चा होने के कारण भी यहां ज्यादा गंदगी फैलती है।
यदि देखा जाये तो जिले में प्रदूषणकारी फैक्ट्रियां भी ज्यादा नही है जिसके कारण गंगा में औद्योगिक प्रदूषण उतना नहीं होता। यहां प्रदूषण के मुख्य कारण श्रद्धालु ही हैं, जो गंगा को भी मैला कर रहे हैं। घाटों पर शवों के अन्तिम संस्कार या फिर स्नानार्थियों द्वारा फैलाई जाने वाली गंदगी से जरूर यहां नदी प्रदूषित हो रही है। क्योंकि यहां शुक्रताल में दूर-दराज क्षेत्रों से लोग अपने परिजनों के शवों को अन्तिम संस्कार के लिए शुक्रताल गंगा घाट पर लेकर आते है और शव का आनन-फानन में अन्तिम संस्कार कर शव को अर्द्धजली अवस्था में जल्द से जल्द उसे बिना जले ही गंगा में चलता कर देते है। ऐसा दृश्य देखकर इंसान के रौंगटे खडे हो जाये जिस कारण आज शुक्रताल में गंगा नदी प्रदूषण की चपेट में है और इस ओर जिला प्रशासन सहित सरकार भी आंखे मूंदे बैठी है जबकि प्रत्येक वर्ष यहां गंगा स्नान पर चाहे वह दशहरा गंगा स्नान हो या फिर कार्तिक गंगा स्नान, जिला पंचायत मुजफ्फरनगर के तत्वाधान में मेले का आयोजन किया जाता है। परंतु इसके बावजूद भी न तो जिला प्रशासन ने और न ही प्रदेश सरकार द्वारा शुक्रताल गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए कोई अभियान नहीं चला पा रही है। जनपद मुजफ्फरनगर में पूर्व में चार-चार राज्य मंत्रियों व तीन सांसद भी रह चुके है और वर्तमान में भी एक राज्यमंत्री चितरंजन स्वरूप व एक बसपा सांसद कादिर राणा है लेकिन इनका भी इस ओर कोई ध्यान नहीं है। ज्ञात हो कि विगत वर्ष भी प्रदेश सरकार ने गंगा प्रदूषण मुक्ति के लिए सौ करोड़ का बजट निर्धारित किया, लेकिन मुजफ्फरनगर जिले को इस बजट में कोई हिस्सा नहीं मिल सका। कहने को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समय-समय पर मानीटरिंग करता है लेकिन प्रशासन भी सिर्फ खानापूर्ति तक ही सीमित रहता है। गंगा में प्रदूषण को लेकर न सिर्फ सोरों के वाशिन्दों ने कई बार अनशन और विरोध जताया है, अन्य संस्थायें भी इस समस्या को उठाती रहीं हैं। आन्दोलन के दौरान प्रशासन तमाम आश्वासन देकर घाटों की सफाई का काम पूरा करा देता है। क्रमिक कार्रवाई न होना भी प्रदूषण बढ़ने का प्रमुख कारण है।
गंगा नदी को छोड़ जिले में काली नदी प्रदूषण की भेंट चढती नजर आती हैं। नगर में काली नदी जहां शहर के नालों का पानी पहुंचने के बाद पूरी तरह दलदल में परिवर्तित हो चुकी है  और  जिला प्रशासन द्वारा काली नदी के प्रदूषण पर कभी ध्यान ही नहीं दिया गया। इस नदी की सफाई उसी हाल में कराई जाती है, जब बारिश से पहले नगर पालिका को जल निकासी की व्यवस्थायें करनी हों। इनके अलावा शहर के निकट स्थित शानिधाम के पास वर्षो पहले मोती झील के नाम से एक नदी होती थी जिसका आज नामोनिशान ही समाप्त हो गया है और यदि कुछ बची है तो उसमें नगर पालिका परिषद के सफाई कर्मचारियों द्वारा शहर का कचरा डालकर उसका अस्तित्व मिटाने में जुटे है। ऐसा नहीं है कि जिलाधिकारी को इसकी जानकारी नहीं है बल्कि पूर्व में कई बार सामाजिक लोगों के द्वारा जिलाधिकारी को प्रार्थना पत्र दिये जा चुके है लेकिन आज तक इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया और न ही मोती झील की सफाई करायी गयी है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारियों की माने तो कि यहां प्रदूषण से इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन प्रदूषण इतना नहीं है कि उसके लिए क्रमिक कार्यवाही की जाये।
जैसे विगत वर्ष सहारनपुर के जिलाधिकारी द्वारा पांवधोयी नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए जिस तरह सख्त नियम बनाकर पांवधोयी नदी को प्रदूषण मुक्त करा दिया है वैसे ही यदि जिलाधिकारी सुरेन्द्र सिंह चाहे तो नियम बनाकर शुक्रताल नदी की सफाई कराये और यदि किसी व्यक्ति द्वारा नदी में किसी प्रकार की गंदी फैंकी जाये तो उससे पूरा दिन नदी की साफ-सफाई कराकर सजा दी जाये तो शायद सहारनपुर की पांवधोयी की तरह शुक्रताल की नदी व नगर की काली नदी को दिन-प्रतिदिन बढते प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है। लेकिन जिला प्रशासन के साथ साथ जनपद का प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के अधिकारी भी अपनी आंखों पर काली पट्टी बांधे बैठे है जिन्हें दिखाई देते हुए भी कुछ दिखाई नहीं दे पता है।

प्रदूषित जल से मर रहे विलुप्त प्रजाति के जीव

विदित हो कि विगत दिनों गंगा नदी में फैक्ट्रियों के प्रदूषित जल समाहित होने के कारण लाखों विलुप्त प्रायः प्रजाति की मछलियों की मृत्यु हो चुकी है। आज भी नदी प्रदूषित होने के कारण नदी में विलुप्त प्रायः प्रजाति के जीवों की मृत्यु हो रही है। लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी जिला प्रशासन अपनी आंखों पर काली पट्टे बांधे बैठा है जिसके दिखाई देने के बावजूद भी कुछ नहीं दिखता है। आज गंगा नदी में हो रहे प्रदूषण को देखते ही कानून अंधा है जिसे कुछ दिखाई नहीं देता की कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही है। क्योंकि जिला प्रशासन को नदी में आये दिन दूषित जल के मिलने से नदी इस दूषित जल से नदी का जहरीला पानी होने की खबर होने के बाद भी वह मौन है। साथ ही इस मुद्दे पर केन्द्र सरकार भी कोई सख्त कदम नहीं उठा पा रही है।

कच्चा घाट होने के कारण भी ज्यादा रहता है गंदा पानी

शुक्रताल में स्थित गंगा नदी में स्नान करने के लिए आने वाले लोगों को गंदे पानी में स्नान करना पडता है। साधु सन्तों व शुक्रताल में गंगा स्नान करने के लिए आने वाले लोगों की माने तो शुक्रताल की गंगा नदी में जिस घाट पर श्रद्धालु गंगा स्नान करते है वह कच्चा है जिस कारण वहां घाट के किनारों पर घास जमी रहती है और गंदगी फैली रहती है और गंगा का पानी में गंदगी रहती है। परंतु मजबूरीवश श्रद्धालुओं को गंगा के ऐसे पानी में स्नान करना पडता है। गंगा स्नान के समय कई बार अनहोनी हो चुकी है। विगत माह भी गंगा स्नान के समय मुजफ्फरनगर के दो पिता पुत्र की गंगा में डूबने से मौत हो चुकी है। यदि शुक्रताल का गंगा घाट पक्का हो तो न तो यहां पर गंगा के पानी में गंदगी फैलेगी और न ही किसी प्रकार की अनहोनी होगी।

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