Pages

Saturday, September 1, 2012

यदि जज चाहें तो कोई दंगाई बच नहीं सकता

यह भयावह नैराश्य को तोड़ने वाला फैसला है। बल्कि इसे फैसला कहना ही गलत होगा। इसे रक्तपात के विरुद्ध न्यायिक युद्ध करार दिया जाए, तो भी कम है। इसे बर्बरता की स्याह लिखावट को मिटाकर इन्सानियत की उजली इबारत माना जा सकता है। नरोडा पाटिया नरसंहार ने समूचे देश को दहला दिया था। विशेष अदालत की जज ने इस इंसाफ से हिंसक तत्वों के दिलों में कानून का खौफ पैदा कर दिया है। इन सबसे बढ़कर इसे अदालतों में, देश के कानून में आस्था लौटाने की बड़ी पहल भी बनाया जा सकता है।
 अदालतों की अनंत सुनवाई और कभी किसी तार्किक मोड़ पर न पहुंचने का संशय खुद जज सार्वजनिक रूप से व्यक्त करते रहे हैं। बाकी सारे मामले, मामले ही बनकर जटिल कानूनी कार्यवाही में उलझे रहें तो खास फर्क नहीं पड़ता। लेकिन दंगाइयों के सजा से कोसों दूर बने रहने से सभ्य समाज कलंकित होता है। भरोसा टूटता है। भय फैलता है। हमले बढ़ते हैं। दंगे फिर होते हैं। दंगाई फिर रक्तपात करते हैं। मुंबई के चार-चार दंगों में बार-बार वही मिलते-जुलते उपद्रवी आखिर क्यों उत्पात मचाते नजर आते हैं?
 हम पुलिस को कोसते हैं। सरकार की ओर देखते-देखते पस्त हो जाते हैं। कुछ नहीं होता। नहीं ही होगा। पुलिस जैसी है, वैसी ही रहेगी। वैसी ही रहने को शायद शापित है। सरकार सिर्फ स्वार्थ देखने वाले चुनिंदा नेताओं-अफसरों के आदेशों से चलती है। चलती ही रहेगी। हमेशा। लेकिन जज यदि चाहेंगे तो कोई गुनहगार, पाटिया तो क्या पाताल में भी नहीं बच सकता। आंदोलनों में अपील-दलील-वकील वैसे ही चलते रहेंगे। लेकिन जजों ने हर समय या कि समय-समय पर संविधान और विधि-विधान का हथौड़ा चलाया है।
 लेकिन 1983 के नेल्ली नरसंहार में क्या हुआ? कोई दो हजार निदरेष मौत के घाट उतार दिए गए थे। एक भी आततायी को सजा नहीं हुई आज तक। क्यों? पता नहीं। एक सन्नाटे की कब्र में, डरावनी चुप्पी के साथ जांच आयोग की रिपोर्ट दफन कर दी गई। अनेक नेताओं, केंद्र में मंत्री तक रहे रसूखदारों के नेतृत्व में हुए सिक्ख-विरोधी दंगों के कोई तीन हजार मृतकों के परिवार सिर पटक-पटककर लहूलुहान हो गए। लेकिन इंसाफ नहीं मिला, तो नहीं ही मिला। कोई नहीं बता सकता, ऐसा क्यों?
 नरोडा पाटिया का न्याय, दंगों के कायराना कृत्य के विरुद्ध शक्तिशाली आवाज बन सकता है। लेकिन यह जजों पर है।
sabhar कल्पेश याग्निक  dainik bhaskar.com

No comments:

Post a Comment