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Saturday, September 1, 2012

पाक नागरिक के मुकदमे की फिर से सुनवाई के निर्देश

नई दिल्ली उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में 1997 में हुए बम विस्फोट कांड में पाकिस्तानी नागरिक मोहम्मद हुसैन को दोषी ठहराने और इस अपराध के लिए उसकी मौत की सजा निरस्त करते हुए इस मामले की फिर से सुनवाई का आदेश दिया है। इस बम विस्फोट में चार व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी थी। न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने मोहम्मद हुसैन की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि मुकदमे की सुनवाई के दौरान उसे अपने बचाव के लिए समुचित अवसर नहीं दिया गया था। इससे पहले, मोहम्मद हुसैन की अपील पर उच्चतम न्यायालय में दो सदस्यीय पीठ ने सुनवाई की थी लेकिन इस मामले मे न्यायाधीशों ने 11 जनवरी को खंडित निर्णय सुनाया था। दो सदस्यीय पीठ में से एक न्यायाधीश इस मुकदमे की नये सिरे से सुनवाई के पक्ष में थे जबकि दूसरे न्यायाधीश का मत था कि इसकी सुनवाई ही गैरकानूनी थी और उन्होंने हुसैन को वापस पाकिस्तान भेजने का आदेश दिया था। मोहम्मद हुसैन को नवंबर 2004 में निचली अदालत में बम कांड में दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनायी थी। मोहम्मद हुसैन पर ब्लू लाइन बस में हुए बम विस्फोट में शामिल होने का आरोप था। इस विस्फोट में चार व्यक्ति मारे गए थे और 24 अन्य घायल हो गए थे। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अगस्त 2006 में मोहम्मद हुसैन को दोषी ठहराने और इस अपराध के लिए उसकी मौत की सजा की पुष्टि कर दी थी। इसके बाद हुसैन ने इस निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।
उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ हुसैन के मामले में की जाने वाली कार्यवाही को लेकर मतैक्य नहीं थी लेकिन वे इस तथ्य पर एकमत थे कि हुसैन को मौत की सजा सुनाते समय संविधान और कानून के बुनियादी सिद्धांतों को निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने नजरअंदाज किया है। न्यायालय ने कहा था कि हुसैन को दोषी ठहराने और उसे मौत की सजा देने का निर्णय निरस्त करना ही होगा क्योंकि उसे निचली अदालत में अपने बचाव के लिए वकील की सेवाएं मुहैया नहीं करायी गयी थीं। न्यायालय ने कहा था कि फौजदारी के मामलों के तेजी से निबटारे को बढ़ावा दिया जाना चाहिए लेकिन यह लक्ष्य हासिल करने के प्रयास में अभियुक्त को निष्पक्ष और स्वतंत्र तरीके से सुनवाई के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। दो सदस्यीय पीठ ने यह भी कहा था कि निचली अदालत और उच्च न्यायालय को यह देखना चाहिए था कि अभियुक्त के साथ निष्पक्ष और न्यायोचित तरीके से पेश आया जाए। न्यायालय ने कहा था कि फौजदारी के मामले में अभियुक्त वकील की सहायता का हकदार है क्योंकि यह उसके बचाव के लिए जरूरी हो सकता है।
sabhar प्रभासाक्षी

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