नई दिल्ली. कोयला ब्लॉक आवंटन सहित तमाम मोर्चो पर जूझ रही केंद्र सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए एक बार फिर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का ‘हथियार’ चलाने का निश्चय किया है। सरकार ने सूखाग्रस्त राज्यों के प्रभावित जिलों में योजना के तहत मजदूरों को 100 की जगह 150 दिन मजदूरी की गारंटी देने का मन बनाया है।
योजना को अंतिम रूप देने के लिए जल्द ही एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई जाने वाली है। उम्मीद है कि सरकार इसे सूखा प्रभावित राज्यों के आम जन तक अपनी एक मानवीय और बेहतर पहल के तौर पर प्रचारित करेगी। इसके लिए सरकारी विभागों से आम लोगों को प्रभावित करने वाले विज्ञापन बनवाने की भी तैयारी की जा रही है जिससे फैसले का राजनैतिक लाभ भी सरकार को मिल पाए।
सूत्रों के मुताबिक सरकार की इस पहल के तहत देश के 396 जिलों का चुनाव किया गया है। इसके क्रियान्वयन पर सरकार को 324311.20 लाख रुपये का अतिरिक्त खर्च आएगा। एक वरिष्ठ सूत्र के मुताबिक ‘कोयला घोटाले को लेकर जिस तरह से भाजपा आक्रामक है उससे निपटने के लिए सरकार ऐसा अचूक निशाना लगाना चाहती है जिससे विपक्ष के सभी आरोप धराशायी हो जाएं। ऐसे में मनरेगा से बेहतर विकल्प क्या हो सकता है।
पहले भी यह योजना सरकार को चुनाव जिता चुकी है। ऐसे में सरकार इसे फिर से ‘अमोघ शस्त्र’ की तरह चलाना चाहती है।’ असल में सरकार इन 50 अतिरिक्त दिनों के माध्यम से जहां इन जिलों के लोगों की आर्थिक स्थिति को स्थिर रखना चाहती है, वहीं इसके बहाने वह विपक्षी पार्टी के हमलों से भी निपटना चाहती है। एक वरिष्ठ केंद्रीय नेता का कहना था ‘50 अतिरिक्त दिनों तक जब किसी के घर में चूल्हा जलेगा तो क्या उसे पता नहीं चलेगा कि सरकार उसकी हमदर्द है और विपक्षी दल आरोप लगाने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं।’
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