नई दिल्ली
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोयला ब्लाक आवंटन से निजी कंपनियों को 1.86 लाख करोड़ रुपये के फायदे संबंधी कैग के आकलन को ‘‘स्पष्ट रूप से विवादास्पद और दोषपूर्ण’’ तथा इस संबंध में अनियमितताओं के सभी आरोपों को ‘तथ्यों से परे’ और ‘बेबुनियाद’ बताकर आज खारिज कर दिया। कैग (भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की रिपोर्ट पर पिछले एक सप्ताह से संसद में जारी विपक्ष के भारी हंगामे के बीच सिंह ने संसद के दोनों सदनों में इस मुद्दे पर दिए अपने बयान में कहा, ''मैं माननीय सदस्यों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि रिपोर्ट में उल्लिखित अवधि में से कुछ समय के लिए कोयला मंत्रालय का प्रभारी मंत्री होने के नाते मैं मंत्रालय के निर्णयों की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं। मैं कहना चाहता हूं कि अनियमितताओं के जो भी आरोप लगाए गए हैं वे तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और सरासर बेबुनियाद हैं।’’ उन्होंने कैग की रिपोर्ट में की गयी मुख्य तीन आपत्तियों को भी स्पष्ट रूप से विवादास्पद बताया।
लोकसभा और राज्यसभा में बयान देने के बाद उन्होंने संसद भवन परिसर में संवाददाताओं से बातचीत में विपक्ष से अपील की कि वह संसद को चलने दे और चर्चा द्वारा सचाई को सामने आने दे। दोनों ही सदनों में भाजपा सदस्यों के भारी हंगामे के कारण प्रधानमंत्री अपना पूरा बयान नहीं पढ़ पाए और कुछ भाग पढ़ने के बाद उन्होंने उसे सदन के पटल पर रख दिया, जिसे पढ़ा मान लिया गया। उपरोक्त रिपोर्ट पर उनसे इस्तीफे की मांग कर रहे मुख्य विपक्षी दल भाजपा को भी आड़े हाथ लेते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि संप्रग का शासन आने पर कोयला ब्लाकों का आवंटन प्रतिस्पर्धी बोली से करने का प्रस्ताव हुआ था लेकिन विपक्षी दलों के तत्कालीन शासन वाले छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों ने प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया अपनाने का पुरजोर विरोध किया था।
उधर, प्रधानमंत्री के स्पष्टीकरण के बावजूद मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने कहा कि वह सिंह के इस्तीफे और ‘‘भ्रष्ट सरकार’’ के बहिष्कार के अपने फैसले पर डटा रहेगा। प्रधानमंत्री ने बयान में कहा कि राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अप्रैल 2005 में उन्हें लिखे पत्र में प्रतिस्पर्धी बोली का विरोध करते हुए कहा था कि यह सरकारिया आयोग की सिफारिशों की भावना के विपरीत होगा। सिंह ने कहा कि इसी प्रकार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने जून 2005 में भेजे पत्र में मौजूदा नीति जारी रखने का अनुरोध किया था। उन्होंने कहा कि इसी तरह तत्कालीन वाम मोर्चा शासित पश्चिम बंगाल और बीजद भाजपा शासित ओडिशा सरकारों ने भी प्रतिस्पर्धी बोली पद्धति का औपचारिक विरोध करते हुए उन्हें पत्र लिखे थे। सिंह के मुताबिक विपक्ष शासित राज्यों का कहना था कि प्रतिस्पर्धी बोली के जरिए कोयला ब्लाक आवंटन से कोयले की कीमत बढ़ेगी जिससे उनके क्षेत्रों में उद्योगों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और पट्टेधारी का चयन करने संबंधी उनके विशेषाधिकार भी कम होंगे।
प्रधानमंत्री ने कैग के अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाने पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, ''किसी भी स्थिति में लोकतंत्र में इस बात को स्वीकार करना कठिन है कि नीति में बदलाव को लागू करने के लिए सरकार के कानूनी सुधार संबंधी किसी निर्णय पर लेखा परीक्षा में प्रतिकूल टिप्पणी की जाए।'' कोयला ब्लाक आवंटन में प्रतिस्पर्धी बोली के लिए विधेयक में आवश्यक संशोधन में विलंब के बारे में कैग की टिप्पणी पर उन्होंने कहा, ''कैग रिपोर्ट में इस निर्णय को तेजी से लागू नहीं करने के लिए सरकार की आलोचना की गयी है। मैं इस बात से पूर्णत: सहमत हूं कि यदि आदेश मात्र से काम करना संभव होता तो हम यह काम ज्यादा तेजी से कर सकते थे। लेकिन हमारी संसदीय व्यवस्था में सर्वसम्मति बनाने की जटिल प्रक्रिया को देखते हुए ऐसा करना कठिन है।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि कैग ने जिस नीति की आलोचना की है, वह संप्रग सरकार से बहुत पहले 1993 से चली आ रही है। उन्होंने कहा कि एक अंतर मंत्रालयी जांच समिति की सिफारिश के आधार पर 1993 से ही कोयला ब्लाकों का आवंटन किया जा रहा था। इस समिति में राज्य सरकारों के भी प्रतिनिधि थे। उन्होंने कहा कि कोयला एवं कैप्टिव कोल ब्लाकों की तेजी से बढ़ती मांग को देखते हुए संप्रग-1 सरकार ने पहली बार जून 2004 में प्रतिस्पर्धी बोली से आवंटन का विचार किया। सिंह ने कहा कि कैग का यह कथन दोषपूर्ण है कि मौजूदा प्रशासनिक निर्देशों में संशोधन करके 2006 में प्रतिस्पर्धी बोली शुरू की जा सकती थी। उन्होंने कहा कि 25 जुलाई 2005 को प्रधानमंत्री कार्यालय में एक बैठक आयोजित की गयी, जिसमें कोयला एवं लिग्नाइट वाले राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। बैठक में राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों ने प्रतिस्पर्धी बोली अपनाने के प्रस्ताव का विरोध किया था। बयान में उन्होंने कहा कि बैठक के बाद यह देखा गया कि प्रस्तावित बदलाव के लिए जरूरी विधायी परिवर्तन को लाने में काफी समय लगेगा और कैप्टिव खनन की आवंटन प्रक्रिया को कोयले की बढ़ती मांग के मददेनजर इतने लंबे समय तक रोक कर नहीं रखा जा सकता इसलिए बैठक में निर्णय लिया गया कि नयी प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया जब तक प्रचलित नहीं हो जाती तब तक मौजूदा जांच समिति प्रक्रिया के माध्यम से कोयला ब्लाकों के आवंटन को जारी रखा जाए और यह केंद्र एवं संबंधित राज्य सरकारों का सामूहिक निर्णय था।
निजी कंपनियों को 1.86 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक लाभ संबंधी कैग के आकलन को स्पष्ट रूप से विवादास्पद बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ''मैं विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूं कि यदि हम कैग के इस विचार को मान भी लें कि निजी कंपनियों को लाभ हुआ, उनके द्वारा किए गए आकलन पर कई तकनीकी बिंदुओं के आधार पर प्रश्नचिन्ह लगाया जा सकता है।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि कैग द्वारा औसत के आधार पर खनन योग्य भंडारों की गणना करना सही नहीं है। भू– खनन की अलग अलग परिस्थितियों, खनन की पद्धति, सतह की विशिष्टताओं, सेटलमेंट्स की संख्या, आधारभूत सुविधाओं की उपलब्धता इत्यादि के कारण कोल इंडिया लिमिटेड के लिए भी कोयला उत्पादन की लागत हर खान में अलग अलग होती है। सिंह ने कहा कि तीसरी बात यह है कि कोल इंडिया लिमिटेड सामान्य तौर पर बेहतर आधारभूत सुविधा वाले और खनन के लिए ज्यादा अनुकूल परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में कोयले का खनन करता है जबकि कैप्टिव खनन के लिए दिए जाने वाले कोयला ब्लाक आम तौर पर अधिक कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे में केवल कोल इंडिया लिमिटेड की औसत उत्पादन लागत और विक्रय मूल्य के आधार पर निजी कंपनियों के संभावित आर्थिक लाभ का आकलन करना बहुत ही भ्रामक हो सकता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि 1993 के बाद की सरकारों ने कैप्टिव उपयोग के लिए कोयला ब्लाकों के आवंटन की नीति को जारी रखा तथा इन आवंटनों को राजस्व बढ़ाने का क्रियाकलाप नहीं समझा। उन्होंने कहा, ''मैं इस बात को दोहराना चाहूंगा कि इस संबंध में नीलामी शुरू करने का विचार पहली बार संप्रग सरकार ने कैप्टिव ब्लाकों की बढ़ती मांग के मद्देनजर किया। सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इस विचार की समीक्षा करने के लिए कार्रवाई शुरू की गयी और 2010 में आवश्यक कानूनी संशोधन का अनुमोदन कर संसद में प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया।
सिंह ने कहा कि नयी प्रणाली शुरू होने तक कोल ब्लाकों के आवंटन को स्थगित रखने से ऊर्जा उत्पादन, जीडीपी वृद्धि एवं राजस्व संग्रहण में कमी आ जाती और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कैग ने इन पहलुओं पर गौर नहीं किया है। प्रधानमंत्री ने कैग के इन सुझावों को अलोकतांत्रिक और संघीय व्यवस्था की भावना के विपरीत बताया जिसमें परोक्ष रूप से कहा गया है कि सरकार को कई राज्य सरकारों, जिनमें विपक्षी दलों की सरकारें भी शामिल थीं, द्वारा दर्ज आपत्तियों के बावजूद प्रशासनिक अनुदेशों द्वारा विधायी प्रक्रिया से बचना चाहिए था। सिंह ने कहा, ये तथ्य स्वयं स्पष्ट हैं और दर्शाते हैं कि कैग के निष्कर्ष कई मायनों में दोषपूर्ण हैं।’’ मनमोहन सिंह ने बयान में कहा कि जब कानूनी बदलाव लाने की प्रक्रिया चल रही थी तब सरकार के सामने केवल यही एक विकल्प था कि जांच समिति तंत्र के माध्यम से मौजूदा प्रणाली को तब तक जारी रखा जाए जब तक नीलामी आधारित प्रतिस्पर्धी बोली की नयी प्रणाली तैयार नहीं हो जाती।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, यह सही है कि जिन निजी पार्टियों को कैप्टिव कोल ब्लाक आवंटित किए थे, वे अपने उत्पादन लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाए। इसका कारण आंशिक तौर पर वे जटिल प्रक्रियाएं हो सकती हैं जो सांविधिक मंजूरियां प्राप्त करने से संबंधित हैं। सिंह ने कहा कि इस विषय में सरकार अलग अलग कार्रवाई कर रही है। उन्होंने कहा, ‘‘हमने उन आवंटनों को समाप्त करने की कार्रवाई शुरू कर दी है, जहां पार्टियों ने उत्पादन शुरू करने के लिए पर्याप्त कार्रवाई नहीं की।’’ उन्होंने कहा कि इसके अलावा सीबीआई कदाचार संबंधी आरोपों की जांच अलग से कर रही है जिसके आधार पर यदि किसी ने कदाचार किया है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
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