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Sunday, August 26, 2012

किसानों के हित पर पीएम के सलाहकार को दो टूक

विजय उपाध्याय
लखनऊ . यूपी सरकार ने प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहाकार के नेतृत्व में आये प्रतिनिधि मंडल को दो टूक बता दिया कि वह गन्ने को विनियमन मुक्त(डी-रेगुलेशन) यानी स्वछंद कर चीनी मिलों के हवाले करने के लिए कत्तई तैयार नही है। डी रेगुलेशन जनहित, कृषक हित एवं कानून व्यवस्था के लिहाज से ठीक नहीं है।
 गन्ने को मिलों के लिए स्वछंद किये जाने के मुद्दे पर प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद् के अध्यक्ष डॉ. सी. रंगराजन के साथ हुई बैठक में सीएम अखिलेश यादव ने कहा है कि राज्य में गन्ना किसानों के हितों की अनदेखी किसी भी हाल में नहीं होने दी जाएगी। राज्य में बड़ी संख्या में किसान गन्ने की खेती करते हैं और गन्ने से जुड़ी गतिविधियों से बहुत सारे लोगों की आजीविका चलती है। ऐसे में गन्ने के मसले पर कोई भी निर्णय लेने से पहले सभी पहलुओं पर गौर किया जाएगा। प्रतिनिधि मंडल इसी मुद्दे पर उप्र के सीएम से चर्चा करने लखनऊ पहुंचा था। पिछले कई वर्षो में यह पहली बार है कि प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहाकार परिषद के अध्यक्ष स्वयं किसी मुद्दे पर चर्चा करने लखनऊ आये हो। बैठक में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद् के सदस्य नन्द कुमार सदस्य राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण अशोक गुलाटी अध्यक्ष कृषि लागत और मूल्य आयोग सुधीर कुमार सचिव खाद्य एवं रसद विभाग भारत सरकार भी मौजूद थे।
सीएम अखिलेश पीएम के आर्थिक सलाहकार समिति के अध्यक्ष के तर्को से असहमत रहे। उन्होने कहा कि डी-रेगुलेशन से चीनी मिलों को मनमानी करने की छूट मिल जाएगी। मिलें वाह्य क्षेत्र, गेट, ग्राम, क्रय केन्द्रों से गन्ना खरीद सकती हैं, जिससे क्षेत्रीय मिल के कृषकों में आक्रोश उत्पन्न हो सकता है। इस बात की भी संभावना है कि किसी एक ग्राम में कई चीनी मिलें अपने-अपने क्रय केन्द्र स्थापित कर लें तथा किसी ग्राम में क्रय केन्द्र स्थापित न भी करें।
यादव ने आगे कहा कि गन्ना क्षेत्र को विनियमन मुक्त करने पर छोटे व साधारण गन्ना किसानों के शोषण की पूरी संभावना है। ऐसे में प्रभावशाली लोग छोटे व साधारण गन्ना किसानों से मनमाने ढंग एवं दर से गन्ने की खरीद कर मिलों को ऊँची दरों पर गन्ने की आपूर्ति कर मुनाफा कमाएंगे। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया से गन्ना मूल्य प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा, जिसका अनुचित लाभ बड़ी पेराई क्षमता वाली चीनी मिलें उठाएंगी। यादव ने कहा कि प्रदेश की सहकारी गन्ना समितियों की मु य जि मेदारी गन्ना किसानों की गन्ना आपूर्ति सुनिश्चित कराना होता है। डी रेगुलेशन से चीनी मिलें स्वछन्द होंगी और गन्ना समितियों का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा। गन्ना समितियां अपने क्षेत्र गन्ना कृषक सदस्यों को उर्वरक, गन्ना बीज, कीटनाशक एवं कृषि यंत्र आदि ऋण पर वितरित करते हैं तथा गन्ना मूल्य भुगतान से उक्त ऋण को समायोजित कर लेते हैं। यही नहीं गन्ना विकास परिषदों द्वारा सड़क निर्माण,स पर्क मार्ग बनाए जाते हैं।
किन प्रावधानों से मिले चाहती है मुक्ती यूपी में गन्ना क्षेत्र के प्रबंधन के लिए यूपी गन्ना पूर्ति एवं खरीद विनियमन अधिनियम-1953, उप्र गन्ना पूर्ति एवं खरीद विनियमन नियमावली-1954 एवं उप्र गन्ना पूर्ति एवं खरीद आदेश-1954 प्रभावी हैं। उप्र गन्ना पूर्ति तथा खरीद विनियमन अधिनियम-1953 की धारा-14 के अन्तर्गत गन्ने की सर्वेक्षण नीति जारी करके गन्ने का सर्वेक्षण कराया जाता है। यूपी गन्ना पूर्ति तथा खरीद विनियमन अधिनियम-1953 की धारा 12 के अन्तर्गत चीनी मिलों की गन्ने की आवश्यकता निर्धारित की जाती है। केन्द्र सरकार चाहती है कि राज्य सरकार इन कानूनों को समाप्त कर दे।
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