लखनऊ. यूपी सरकार ने कॉस्ट कटिंग शुरू कर दी है। वित्त विभाग ने प्रदेश के सभी विभागों को निर्देश दिए हैं कि अगले साल के बजट के लिए कम खर्च वाली योजनाएं बनाएं। साथ ही जहां तक हो सके खर्च में कटौती की जाए। नई गाड़ियों की खरीद के लिए बजट में सीधे प्रस्ताव नहीं दें। कोशिश करें कि ठेके पर कर्मचारी रखने की बजाए पूरा काम ही ठेके पर दे दिया जाए। विभाग अपने यहां स्वीकृत पदों की बजाए काम कर रहे कर्मचारियों के ही वेतन आदि का प्रस्ताव बजट में करें।
प्रदेश के वित्त विभाग के प्रमुख सचिव आनंद मिश्र ने 2012-14 के वित्तीय वर्ष के बजट के लिए इसी तरह की गाइडलाइन जारी की है। विभागों को इनके आधार पर अपने प्रस्ताव शासन को 30 नवम्बर तक भेजने हैं। इसमें कहा गया है कि विभाग में किसी भी नई योजना लाने से पहले अफसर कुछ अहम पहलुओं पर गौर जरूर कर लें। इनमें सीमित संसाधनों के बीच क्या योजना लागू किया जाना जरूरी है? क्या नई योजना एनजीओ के जरिए चलाने पर कम खर्च आएगा? किसी मौजूदा योजना को खत्म कर बिना कोई अतिरिक्त खर्च के ये नई योजना शुरू की जा सकती है? आर्थिक रूप से इस योजना में कितना रिटर्न हो सकता है?
इसके अलावा निर्देश दिए गए हैं कि नई गाड़ियों की खरीद के लिए बजट में सीधे प्रस्ताव देने की बजाए शासन से मंजूरी ली जाए। प्रशासनिक विभागों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए लाभार्थी तक अपेक्षित लाभ पहुंचाने के लिए डिलीवरी सिस्टम पर सीधा कितना खर्च किया जा रहा है? और इसकी निगरानी पर कितना खर्च हो रहा है? सरकारी योजनाओं में टाइम ओवर रन व कास्ट ओवर रन के पहलू को भी देखा जाना चाहिए।
नए निर्माण कार्यो के लिए पैसे की व्यवस्था तभी की जाए, जब पुराने अधूरे कामों के लिए पैसा जुटा लें। कास्ट बेनिफिट के आधार पर जो योजनाएं जरूरी न रह गई हों, उनसे संबंधित निर्माण कार्य बंद करने या दूसरे काम में इस्तेमाल करने पर विचार किया जाए। साथ ही स्वीकृत पदों की बजाए कर्मचारियों के पद जितने भरे हैं उनके ही वेतन, महंगाई भत्तास और अन्य भत्ते आदि के खर्च अनुमान तैयार करें। जिन विभागों में जरूरत से ज्यादा स्टाफ हैं, वहां उनके वेतन व अन्य भत्ते के भुगतान के लिए अनुदान के तहत अलग से व्यवस्था का प्रस्ताव भेजें।
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