नई दिल्ली। महाराष्ट्र के सिंचाई घोटाले में भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी उलझते जा रहे हैं। गुरुवार को मीडिया में एक पत्र सार्वजनिक हुआ। गडकरी ने इसे 30 जुलाई 2012 को केंद्रीय जल संसाधन मंत्री पवन कुमार बंसल को लिखा था। इसमें उन्होंने राज्य की गोसीखुर्द सिंचाई परियोजना केठेकेदारों को 400 करोड़ रुपए जारी करने की सिफारिश की थी। बंसल ने भी इस पत्र की पुष्टि करते हुए कहा कि गडकरी ने इस तरह के'दो-तीन पत्र' उन्हें लिखे थे। मीडिया के सवालों के जवाबमें बंसल ने कहा, 'गडकरी के मुताबिक क्षेत्र के लिए यह परियोजना बेहद जरूरी है। चूंकि यह पत्र भाजपा अध्यक्ष ने लिखा था इसलिए मैंने उस पर वीआईपी लिखकर अफसरों को जरूरी कार्रवाई के लिए भेज दिया था।'
किसानों के हित में लिखा था : गडकरी
गडकरी ने स्वीकार किया उन्होंने पत्र लिखा था। मुंबई में पत्रकारों से उन्होंने कहा,'हां, मैंने बंसल को पत्र लिखा। जरूरत पड़ी दस और लिखूंगा। मैंने विदर्भ के किसानों के हितों में इसे लिखा था।' घोटाला दबाने का भी आरोप इससे पहले महाराष्ट्र की सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि दमानिया ने गडकरी पर सिंचाई घोटाला दबाने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था किवे भाजपा अध्यक्ष से यह मामला उजागर करने में मदद मांगी। लेकिन उन्होंने मना कर दिया। यह कहते हुए कि शरद पवार से उनके निजी संबंध हैं। गौरतलब है कि 60 हजार करोड़ के इस घोटाले में पवार के भतीजे अजित को राज्य के उप-मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा है।
भाजपा ने कहा- प्रफुल्लपटेल ने भी लिखे थे पत्र
गडकरी का पत्र सार्वजनिक होने को भाजपा ने साजिश बताया है। पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि यह भाजपा अध्यक्ष की छवि खराब करने की कोशिश है। सच्चाई यह है कि गोसीखुर्द परियोजना के लिए केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल और महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष माणिकराव ने भी सिफारिशी पत्र लिखे थे।
दिग्विजय बोले-राजनेता से ज्यादा व्यापारी हैं गडकरी
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने गडकरी पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा अध्यक्ष राजनेता से ज्यादा व्यापारी हैं। यह स्पष्ट है कि उनकी (गडकरी की) रुचि ठेकेदारों को पैसा दिलाने की थी। जिसके वे हकदार थे ही नहीं।
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने गडकरी पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा अध्यक्ष राजनेता से ज्यादा व्यापारी हैं। यह स्पष्ट है कि उनकी (गडकरी की) रुचि ठेकेदारों को पैसा दिलाने की थी। जिसके वे हकदार थे ही नहीं।
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