लखनऊ. बागी बलिया। जहां से स्वतंत्रता संग्राम की जो ज्वाला धधकी तो अंग्रेज भी उसे न रोक पाए। वहां तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने शहीदों के नाम पर जिस ट्रस्ट की नींव रखी, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जिस ट्रस्ट के चेयरमैन बनाए गए, बलिया के उसी ट्रस्ट को एलॉट की गई सरकारी जगह पर बहुजन समाज पार्टी ने जिला कार्यालय बनाने के लिए कब्जा करने की कोशिश की।
इतना ही नहीं, तत्कालीन डीएम बसपा पार्टी कार्यालय खुलवाने में ऐसे जुटे कि ट्रस्ट के पदेन सचिव की हैसियत से खुद को ही पत्र लिख डाला। फिर डीएम की हैसियत से ट्रस्ट के इंस्टीट्यूट को दी गई जगह सील कर दी। ट्रस्ट इलाहाबाद हाइकोर्ट गया तो वहां भी उसकी अपील खारिज कर दी गई।
अब सुप्रीम कोर्ट सख्ती दिखाई है। सुप्रीम कोर्ट जस्टिस आरएम लोढ़ा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को दरकिनार करते हुए शहीद स्मारक ट्रस्ट की रिट याचिका पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश जारी किया है। उधर मामले में सत्तारूढ़ सपा सहित अधिकतर पार्टियों ने इसे बसपा की भ्रष्टाचारयुक्त कार्यशैली का एक और उदाहरण बताया है।
ट्रस्ट के आरोप को हल्के में लेने पर सर्वोच्च अदालत ने हाईकोर्ट के रवैये पर कड़ी नाराजगी जताई है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि हर मसले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए अदालत को उसे परखकर आदेश जारी करना चाहिए। यह बहुत ही गंभीर मसला है जिसमें ट्रस्ट के पदेन पदाधिकारी (एक्स ऑफिशियो) होने का फायदा उठाते हुए जिले के डीएम ने पूरी कहानी बनाई और ट्रस्ट को मिले सरकारी स्थान के आवंटन को रद्द कर दिया।
ये है पूरा मामला पूरा मामला
ट्रस्ट का गठन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की स्वर्ण जयंती पर बलिया में किया गया। 19 अगस्त, 1992 को एक कार्यक्रम के दौरान यहां आए तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ट्रस्ट के गठन के साथ एक करोड़ रुपए देने का ऐलान किया। इस ट्रस्ट के पहले चेयरमैन और ट्रस्टी पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर बनाए गए। यही नहीं नारायण दत्त तिवारी और केंद्र सरकार के सांस्कृतिक सचिव इस ट्रस्ट के पहले ट्रस्टी बनाए गए। इसके अलावा अन्य सदस्यों में बलिया के डीएम को पदेन पदाधिकारी के तौर पर सचिव का पद हासिल हुआ।
27 मार्च 2002 को डीएम बलिया ने राजस्व विभाग के दो कमरे ट्रस्ट को एलॉट कर दिए। इसके लिए प्रदेश सरकार से अनुमति भी ली गई। इसके बाद ट्रस्ट ने गरीब बच्चों के लिए यहां आईटी ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट स्थापित करने का रेजोल्यूशन पास किया। इंस्टीट्यूट को जाने माने गणितज्ञ डॉ.गनेशी प्रसाद के नाम से खोला गया। इंस्टीट्यूट के लिए बगल की जमीन पर सांसद निधि से इमारत बनी। 6 जून 2004 को एडिशनल डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट ऑफिसर समाज कल्याण ने इस इंस्टीट्यूट का फिजिकल वैरिफिकेशन किया तो यहां करीब 500 स्टूडेंट कंप्यूटर की पढ़ाई कर रहे थे।
फिर 15 मई 2009 को बलिया के डीएम दफ्तर से एक आदेश आया, जिसमें कहा गया कि ट्रस्ट के सचिव जो खुद बलिया के ही डीएम हैं, ने एक पत्र जिला प्रशासन को भेजा है कि ट्रस्ट को दी गई जगह का कोई इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है, इसलिए एलॉट की गई सरकारी जगह वापस ली जाती है। इस आदेश के साथ ही डीएम बलिया ने अन्य अधिकारियों और पुलिस के साथ मिलकर 29 अगस्त 2009 को जगह सील कर दी।
इसके बाद इंस्टीट़यूट के प्रिंसिपल प्रदीप राय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की, जिसमें आग्रह किया गया कि सील खुलवाई जाए ताकि इंस्टीट्यूट के स्टूडेंट का एग्जाम कराया जा सके। इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने 28 अगस्त 2009 को अंतरिम आदेश दिया कि इंस्टीट्यूट की सील खोल दी जाए ताकि परीक्षाएं कराई जा सकें।
फिर 30 अगस्त को ट्रस्टीज की तरफ से ट्रस्ट के सचिव डीएम को पत्र भेजकर कहा गया कि उन्होंने ट्रस्ट को मिली सरकारी जगह को वापस करने का फैसला बिना ट्रस्टीज से बात किए, न ही कोई मीटिंग बुलाए कैसे कर लिया ? 4 सितम्बर को ट्रस्टीज की तरफ से दोबारा एक पत्र डीएम को भेजा गया और आग्रह किया कि दो दिन के अंदर ट्रस्ट की मीटिंग बुलाई जाए। लेकिन कोई मीटिंग नहीं हुई। इसके बाद ट्रस्ट की तरफ से एक जनहित याचिका हाइकोर्ट में दाखिल की गई, जिसमें 15 मई 2009 के निर्णय को रद करने की अपील की गई।
याचिका में कहा गया कि ट्रस्टीज ने ही रेजोल्यूशन पास करके इस डॉ.गनेशी प्रसाद आईटी इंस्टीट्यूट की स्थापना की है। याचिका में कहा गया कि चेयरमैन चंद्रशेखर की मृत्यु के बाद रवि शंकर सिंह को ट्रस्ट का चेयरमैन बनाया गया।
याचिका में आरोप लगाया गया कि प्रदेश में सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी के पास बलिया में कोई दफ्तर नहीं है इसलिए वह ट्रस्ट की इस जगह को हथियाना चाहती है। इसीलिए बलिया के डीएम पर लगातार प्रेशर बनाया गया, जिस कारण उन्होंने ट्रस्ट के सचिव की हैसियत से अपने आप ही एलॉटमेंट सरकार को वापस करने संबंधी पत्र जारी कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ट्रस्ट की इस याचिका के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में न तो डीएम की तरफ से कोई काउंटर एफिडेविट फाइल किया गया न ही प्रदेश सरकार की तरफ से। हाईकोर्ट ने इस मामले में सील हटाने का आदेश तो जारी कर दिया लेकिन दूसरे पक्ष से जवाब तलब किए बगैर ही मामले पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया और कहा कि ट्रस्ट का सरकारी स्थान पर निजी अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी इसी बात को लेकर है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट मामले की दोबारा सुनवाई करने जा रहा है।
उधर प्रदेश सरकार के मंत्री शिवपाल सिंह यादव का कहना है कि बसपा कार्यकाल में हर जगह सिर्फ सरकारी संपत्ति की लूट और भ्रष्टाचार किया गया। सिर्फ 6 महीने में ही इतने मामले सामने आ चुके हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेई ने कहा कि चाहे वह बसपा हो या सपा, दोनों ही पार्टियां एक दूसरे की पूरक है। जमीन पर कब्जे, भ्रष्टाचार बसपा कार्यकाल में भी होते थे और अब सपा कार्यकाल में भी हो रहे हैं।
कांग्रेस के नेताओं ने इस संबंध में कोई भी जानकारी नहीं होने की बात कही।
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