ग्लोबल टाइम्स में छपे एक हालिया लेख में चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के एक शोधकर्ता ने लिखा है, 'माओ एक जोरदार प्रहार के जरिए नेहरू को महाशक्तियों के प्रभाव के प्रति सचेत करना चाहते थे, ताकि वह होश में आएं और युद्ध खत्म करें। युद्ध सभ्यताओं के बीच के संवाद का सबसे अतिवादी तरीका है।' इस एक उक्ति से युद्ध के बारे में चीनी रुख को समझा जा सकता है : 1962 का संघर्ष पहले किया गया दंडात्मक प्रहार था, जिसका उद्देश्य माओ के शब्दों में भारत से 'कम से कम तीस साल की शांति की गारंटी' था।
1962 भारत के राष्ट्रीय मानस में बसा है। कई दशकों तक यह असंभव था कि बिना आवेश के युद्ध और इस विवाद के पीछे के गहरे मुद्दों की पड़ताल की जा सके। भारत के लिए 1962 एक स्पष्ट राजनीतिक और सैन्य असफलता थी। नेविल मैक्सवेल का आकलन (जो भले ही पूर्वाग्रह-ग्रस्त है) अक्टूबर युद्ध के बारे में सबसे सटीक जानकारी देता है क्योंकि यह युद्ध में सेना के प्रदर्शन के आकलन के लिए बनी गोपनीय सरकारी हेंडरसन- ब्रूक्स रिपोर्ट पर आधारित है
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