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Tuesday, December 4, 2012

क्या है रंगराजन कमेटी


नई दिल्ली (अलर्ट न्यूज)। 20 जनवरी 2012 को प्रधानमंत्री कार्यालय से सी. रंगराजन समिति का गठन किया और उस समिति ने उत्तर प्रदेश एव उत्तर भारत के प्रांतों के विरोध के बावजूद अपनी 05 अक्टूबर 2012 की रिपोर्ट में हम गन्ना किसानांे को बर्बाद करने की ओर मिल मालिकों को फायदा पहुंचाने की योजना प्रस्तुत की गयी है। जहां किसानों की लडाई गन्ना रेट की होती है। इस रिपोर्ट में यह साफ किया गया है कि राज्य सरकार अपना गन्ना मूल्य घोषित नहीं करेगी साथ में आरक्षण और उसके साथ जुडे फार्म सी का समझौता खत्म करने की सिफारिश की है और जो राज्य सरकार आरक्षण करना चाहे तो कम से कम तीन साल या पांच साल का आरक्षण करना होगा। वहीं दूसरी ओर मिल मालिकों को लेवी शुगर, रिलीज आर्डर में केन्द्र सरकार का दखल खत्म करना, अयात निर्यात पर छूट एवं मिलों को हर कहीं से लाभ देने का काम किया। लेवी शुगर के खत्म करने से मिलों को एक साल में 3000 करोड रूपयों का फायदा होगा। चीनी मिल इन 20 सालों के हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों से दुखी है। कानून का तोड उनके पास नहीं था। इसलिए रंगराजन समिति ने डी-कंट्रोल के नाम पर अपनी रिपोर्ट में कानून खत्म करने की ही सिफारिश कर दी। बिना आरक्षण के बिना राज्य सरकार के रेट आपकी चीनी मिले क्रेशर या कोल्हू की तरह खरीद करेंगी। 50 साल पीछे चले जाओंगे, जहां कुछ साल पहले तक आप अपनी पर्ची साहूकार के पास रखकर गन्ने के पैंसों लेते थे। आज जब कानून भी है, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश आपके हम में भी है तब भी सरकार आपका साथ नहीं देती। इस साल आपने देखा कि जब 20 अपै्रल 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने मिल मालिकों को 3 किस्तों में 2011-12 का गन्ना मूल्य का बकाया 5400 करोड रूपये देने का आदेश दिया और कहा कि किस्त टूटने पर मिल मालिकों से रिकवरी की जाये। पर दूसरी किस्त टूटने पर भी किसी की रिकवरी नहीं की गई।

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