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Saturday, December 29, 2012

बलात्कार की पीड़िता की मौत पर हुए सवाल खड़े

मुजफ्फरनगर (अलर्ट न्यूज)। सिंगापुर में बलात्कार पीड़ित लड़की ने जिस तरह से दम तोड़ा उसकी मौत के बाद देश के सामने इस मौत ने कई सवाल खडे़ कर दिये हैं। महिलाओं की अस्मिता, सुरक्षा और सशक्तिकरण को लेकर चल रही तमाम कवायद के मुद्दे हालांकि पिछले कई दिनों से देशभर में देश के नागरिक, सामाजिक संगठन, राजनेता सभी उठा रहे हैं लेकिन सवाल तो यही है कि न्याय पाने के लिए इस बेटी ने अपनी जान को दांव पर लगा दिया। इस घटना का असर देश पर इतना हुआ कि सभी पक्षों ने इस घटना के बाद अपने अंतरमनकी ओर झांका और ऐसे मुद्दों पर ठोस कार्यवाही करने की मांग की। हालांकि देश में इस घटना के बाद जिस शर्मसार तरीके से विश्वपटल पर नीचा होना पडा वह देश की साख को भी धक्का है। बलात्कार के कानूनों में बदलाव और नारी अस्मिता के सवाल शायद अब आने वाले वर्ष में संसद से लेकर राजनीतिक गलियारों तक में गूंजे लेकिन इस मामले में पीड़िता का यह बलिदान देश को बहुत कुछ करने के लिए भी मजबूर कर रहा है। सियासत से लेकर सामाजिक लोगों को अभी यह नहीं सूझ रहा है कि आखिर ऐसा क्या किया जाये कि महिलाओं की अस्मिता, सुरक्षा और उनके लिंग भेद के मुद्दों पर कोई ठोस कार्यवाही की जाये। समाज में महिलाओं को आज भी कहीं न कहीं राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक अध्किारों में दोयम दर्जे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। 73वें संविधन संशोध्न के बाद महिलाओं को पंचायत से लेकर पंचायत चुनाव में आरक्षण तो मिला लेकिन उन्हें उचित अध्किार आज तक भी नहीं मिले है। इसी तरह महिला हिंसा के माले में तमाम कानूनी प्रक्रियाओं और कानूनों के होने के बावजूद उसका लाभ कितनी आसानी से महिलाओं को मिल पा रह है यह भी सोचने का प्रश्न है। घरेलू हिंसा अध्निियम 2005 के आंकडे उठाकर देख लिये जाये तो यह अधिनियम केवल पारिवारिक समझौते तक ही सीमित रह गया है। देश में अब सवाल महिलाओं के विरूद्ध होने वाली हिंसा को रोकने का है लेकिन इसकी जिम्मेदारी रोकने के लिए न तो सरकार तैयार है और न ही सामाजिक सरोकार। जिस दरिंदगी  और अत्याचार के साथ उस पर शारीरिक और यौन हिंसा हुई उसके बावजूद आरोपियों को कानून की उन्ही धाराओं में बंद किया गया है जो उसके लिए कानून में उपलब्ध है। सवाल यह भी है कि यौन हिंसा और बलात्कार की जो धाराएं और कानून आज कानून में है वो क्या आज के समय के लिए पर्याप्त है। यह एक मामला ऐसा मामला था जो मीडिया, सोशल मीडिया और सामाजिक सरोकारों के साथ पूरी दुनिया में एक नई बहस दे गया है कि इन कानूनों में खासकर भारत देश के परिपेक्ष में किस स्तर का बदलाव होना चाहिए। पितृ सत्ता से लेवरज पुरूष मानसिकता वाले इस समाज में पीड़िता की मौत और हर आदमी को अपने अंदर झांकने को कह रही है। हर घर में बहू, बेटी और मां है। लेकिन इस सबके बावजूद आखिर ऐसी मानसिकता लोगों की क्यों बनती है कि वो दरिंदगी की सारी हदे पार कर देते है और किसी को अपनी जान देनी पडती है। ऐसा नहीं है कि यह बलात्कार की घटना और हत्या की घटना नहीं हो। गांव देहात से लेकर महिलाओं पर हिंसा, यौन हिंसा की खबरे आती है और वो दिल्ली और प्रदेश की राजधनी तक जाते-जाते छोटी हो जाती है। यही कारण है कि इन घटनाओं में शामिल लोग खुलेआम अपने वर्चस्व और वजूद के कारण हंसकर घूमते है और पीड़िता व पीड़ित परिवार शर्मसार होकर चुप बैठने में ही भलाई समझता है। महिलाओं पर हिंसा करने वाले लोगों को अब सरेआम शर्मसार करने की आवश्यकता है। यह कितनी भरी विडम्बना की बात है कि लडकी से छेडछाड लडके करते है और हम अपनी लड़की को ही घर से निकलना बंद कर देते हैं। बलात्कार और यौन हिंसा से पूरे देश की छवि खराब हुई है।

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