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Friday, September 7, 2012

सिगरेट के बजाय दूध-दही बेचेगी आईटीसी! तु सि-ग्रेट हो

चुनौती
फूड सेगमेंट में पहले से ही स्थापित कंपनियों से बाजार हिस्सेदारी छीनना आईटीसी के लिए आसान नहीं होगा
कंपनी ने जिस भी फूड सेगमेंट में कदम रखा है, उसमें बाजार हिस्सेदारी 15 फीसदी तक भी नहीं पहुंच सकी है
बदलते हालात
धूम्रपान-रोधी नियम-कानूनों और ग्राहकों की जागरूकता ने कंपनी के तंबाकू बिजनेस पर नकारात्मक असर डाला है
कई राज्य तंबाकू उत्पादों पर टैक्स बढ़ा चुके हैं, तो कुछ अन्य राज्य जल्द ही टैक्स बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं
सरकार के सभी दिशानिर्देशों का पालन करते हुए तंबाकू उत्पादों की बिक्री करने वाली कंपनियों के साथ भी अजीब संयोग है। अगर ग्राहक तंबाकू पी-पी कर अपनी हालत पतली करते हैं तो कंपनी की बैलेंस शीट पर मलाई की परत बैठती है।इसके बदले ग्राहक तंबाकू छोड़ मलाई पर फोकस करते हैं तो कंपनी के बैलेंस शीट की हालत पतली होने लगती है। इस नजरिए से देखें, तो तमाम वैधानिक चेतावनियों के बीच तंबाकू उत्पाद कंपनियां नहीं चाहतीं कि उनके उत्पादों की बिक्री कम हो।
बहरहाल, इसे एक सुखद बदलाव कहा जा सकता है कि देश की सबसे बड़ी सिगरेट निर्माता कंपनी आईटीसीलिमिटेड इस मोह को त्याग अब स्वास्थ्य की राह पर चल पड़ी है। कंपनी अपने कुल सिगरेट उत्पादन का 80 फीसदी हिस्सा भारतीय बाजार में बेचती रही है।लेकिन सरकार के धूम्रपान-रोधी नियम-कानूनों और ग्राहकों की जागरूकता ने कंपनी के तंबाकू बिजनेस पर खासा नकारात्मक असर डाला है।इसके चलते कंपनी अब तंबाकू उत्पादों के बदले हेल्थ फूड के बिजनेस पर फोकस कर रही है। कंपनी डेयरी प्रोडक्ट्स, हेल्थ ड्रिंक्स और यहां तक कि स्वास्थ्यवर्धक हेल्थ फूड्स की बिक्री बढ़ाने पर फोकस कर रही है।

इसका श्रेय कहीं न कहीं जागरूक होते ग्राहकों पर भी जाता है।आईटीसी फूड्स के मुख्य कार्यकारी चितरंजन डार के बयान में भी इसकी झलक मिलती है।वे कहते हैं कि भारतीय ग्राहक अब जागरूक हो रहे हैं।इसलिए आने वाले वर्षों में हमारे लिए हेल्थ व न्यूट्रिशन एक बड़ा बिजनेस सेगमेंट होगा। ऐसा नहीं कि आईटीसी ने आनन-फानन में यह निर्णय लिया है। कंपनी पिछले कम से कम एक दशक से कुकीज और पोटैटो चिप्स के उत्पादों की बिक्री कर रही है।
लेकिन हेल्दी फूड्स पर फोकस बढ़ाना, आईटीसी के लिए एक तीखा यू-टर्न लेने जैसा है।वर्तमान में भी कंपनी के कुल राजस्व का आधे से ज्यादा हिस्सा तंबाकू उत्पादों से ही आ रहा है। कंपनी में 30.8 फीसदी हिस्सेदारी ब्रिटिश अमेरिकन टोबैको की है। इस लिहाज से फूड सेगमेंट में अपने लिए जगह बना पाना आईटीसी के लिए आसान नहीं होगा।पैकेज्ड आटे के क्षेत्र में कंपनी जरूर अग्रणी है।लेकिन अन्य जिस भी फूड सेगमेंट में इसने कदम रखा है, उसमें इसकी बाजार हिस्सेदारी 15 फीसदी तक भी नहीं पहुंच सकी है।
वैसे, पिछले एक दशक में आईटीसी ने फूड और कंज्यूमर प्रोडक्ट्स पर 4,500 करोड़ रुपये से ज्यादा निवेश किया है।आईडीएफसी सिक्युरिटीज के एमडी निखिल वोरा कहते हैं कि किसी भी अन्य कंपनी ने प्रासंगिक बाजार हिस्सेदारी बनाए बिना किसी कैटेगरी में इतना बड़ा निवेश नहीं किया है।यह निवेश निश्चित रूप से कंपनी को फायदा पहुंचाने वाला साबित होगा।
डार भी इसे स्वीकार करते हैं।वे कहते हैं कि महज एक दशक में फूड बिजनेस में हमने जो हासिल किया है, उसे किसी लिहाज से बुरा नहीं कहा जा सकता। हालांकि अर्नेस्ट एंड यंग के पार्टनर पिनाकीरंजन मिश्रा कहते हैं किआईटीसी जिस भी फूड सेगमेंट में है (और कदम रखने वाली है), उसमें पहले से ही स्थापित प्लेयर हैं। लिहाजा उनसे बाजार हिस्सेदारी छीनना आईटीसी के लिए आसान नहीं होगा।
असल में आईटीसी के सिगरेट बिजनेस को पिछले कुछ वर्षों में कड़े दिशानिर्देशों के चलते खासा नुकसान हुआ है।वर्ष 2008 में भारत में सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान निषेध कर दिया गया, तो एक साल बाद ही सिगरेट के पैकेट पर स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी के ग्राफिक छापने की शर्तों के चलते भी बिक्री पर असर पड़ा।
मौजूदा आलम यह है कि कई राज्य तंबाकू उत्पादों पर टैक्स बढ़ा चुके हैं, तो कुछ अन्य राज्य बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसी वजह से अप्रैल-जून 2012 तिमाही के दौरान कंपनी की सिगरेट बिक्री में अप्रत्याशित रूप से 3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
sabhar dainikbhaskar.com

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