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Sunday, September 9, 2012

वीएम सिंह ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को लिखा पत्र

गन्ना संरक्षण बैठक के बहिष्कार की कि घोषणा, प्रदेश सरकार को बताया किसान विरोधी

सचिन धीमान
लखनऊ (अलर्ट न्यूज)।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन से जुडे लोगों ने लखनऊ में गन्ना संस्थान में आयोजित होने वाली गन्ना सुरक्षण बैठक के बहिष्कार की घोषणा कर दी है। रविवार को राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक पूर्व विधायक सरदार वीएम सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को लिखी चिट्ठी में यह बात कही है।
राकिमस के कनवीनियर वीएम सिंह ने दस सितम्बर से गन्ना संस्थान लखनऊ में शुरू हो रही गन्ना सुरक्षण बैठक के विषय व अन्य बातों पर आज एक पत्र अखिलेश यादव को लिखकर अपनी स्थिति स्पष्ट की।
पत्र में चार बातों का उल्लेख किया गया।
1. गन्ना सुरक्षण बैठक का इसलिए बहिष्कार क्योंकि वायदे के बावजूद भी बैठक का मंडल स्तर पर आयोजन न कराकर सैंकडों मिल दूर लखनऊ में ही आयोजित कराना।
2. इलाहाबाद हाईकोर्ट के 29 अगस्त 2011 के फैंसले को लागू न करा पाना जिसमें माननीय अदालत ने कहा था कि वर्ष 2009-10 में गन्ना डालने वाले किसानों को अधिकतम 75 रूपये प्रति कुन्तल तक और भुगतान कराया जावे।
3. सुप्रीम कोर्ट के 20 अपै्रल 2012 के आदेश के बावजूद चीनी मिलों से वसूली न कर पाना उनकी रिकवरी न करवा पाना।
4. हाई कोर्ट के 6 अगस्त 2012 के आदेश के बावजूद किसानों का गन्ना लेकर 15 दिन में भुगतान न करने वाली मिलों से 15 फीसदी ब्याज सहित भुगतान न करा पाना व अदालत के आदेश के बावजूद कृषि ऋण की किसानों से तत्काल वसूली न रोकना।
उपरोक्त चार बातों को पत्र लिखकर मुख्यमंत्री को वस्तु स्थिति से अवगत कराने का प्रयत्न किया गया है।
पत्र में लिखा गया कि पिछले 20 सालों से किसानों की लडाई लड रहे वीएम सिंह ने विगत वर्ष लखनऊ में हुई गन्ना सुरक्षण बैठक में हजारों किसानों के साथ स्पष्ट किया था कि मूल रूप से गन्ना खेती से जुडा वास्तविक गन्ना कृषक 500-600 किमी दूर लखनऊ में किराया भाडा खर्च कर गन्ना सुरक्षण बैठक में हिस्सा नहीं ले पाता। इसलिए वास्तविक आम किसान की मौजूदगी में उसके हित से सम्बंधित निर्णय नहीं हो पाते। मिल मालिक अधिकांशतः अपने खर्च पर मिल कर्मचारियों को किसान बनाकर बैठा देते है और वहां किसानों की बात नहीं की जाती बस मिल अपना गन्ना क्षेत्र बढाने और उसका रिजर्वेशन कराने में भी लगे रहते है। सोसायटी से आने वाले सदस्य मिल प्रशासन के आगे बोल नहीं पाते। इसलिए यह प्रार्थना की गई थी कि 2012-13 की बैठक मंडल स्तर पर ही हो ताकि आम गन्ना किसान अपनी बात आसानी से रख सके। परंतु गन्ना आयुक्त के आश्वासन के बावजूद मिल मालिकों के दबाव के चलते सरकार ने इस वर्ष भी गन्ना सुरक्षण बैठक गन्ना संस्थान लखनऊ में ही आयोजित करा दी। ऐसे में बैठक का बहिष्कार करना ही एकमात्र विकल्प बचता है।
पत्र में यह भी लिखा गया कि 2009-10 में किसानों को मिलों ने अलग-अलग रेट दिये थे। ऐसे में दिसम्बर में राकिमस गन्ना संस्थान में गन्ना आयुक्त कार्यालय के सामने 40 घंटे का धरना देकर गन्ना आयुक्त और तत्कालीन सरकार से यह आश्वासन लिया था कि सभी किसानों को उस वर्ष किसी भी मिल द्वारा दिया जाने वाला अधिकांश मूल्य ही प्रारम्भ से दिया जायेगा। जिस किसान को प्रारम्भ में अधिकतम मूल्य से जितना भी कम मूल्य मिला होगा वह अन्तर मूल्य उसे दिलाया जायेगा। परंतु सरकार ने ऐसा नहीं किया तब राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन की ओर से वीएम सिंह हाईकोर्ट गये  और उन्होंने हाईकोर्ट से आदेश प्राप्त किया जिसमें स्पष्ट था कि उस वर्ष का जो भी अधिकतम मूल्य रहा हो वह प्रत्येक किसान को दिलाया जाये जोकि भी अन्तर मूल्य आये वह दिया जावे। जैसे की प्रारम्भ में किसी किसान ने 185 रूपये प्रतिकुन्तल की दर से गन्ना मिलों को दिया उस किसान को उस वर्ष का अधिकतम मूल्य 260 रूपये के बीच में होने वाला अन्तर भुगतान दिलाया जावे जो लगभग 75 रूपये बैठता है। उस आदेश के बाद प्रत्येक किसान को लगभग 20 हजार रूपये प्रति एकड अधिकतम भुगतान मिल जाना चाहिए था परंतु हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद प्रदेश सरकार ने किसानों को कोई पैसा नहीं दिलाया इस पर कोई कार्यवाही नहीं की।
इसी तरह से पत्र में लिखा गया कि वर्ष 2011-12 में केन्द्र सरकार ने 145 रूपये प्रतिकुन्तल का रेट घोषित किया और प्रदेश सरकार ने 240 रूपये प्रतिकुन्तल का रेट घोषित किया और किसानों को 145 रूपये प्रतिकुन्तल की दर से ही भुगतान करना शुरू किया। राज्य सरकार चुप रही तब वीएम सिंह हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट गये वहां वीएम सिंह ने कहा कि किसानों ने रिजर्वेशन आर्ड के बाद फार्म सी के तहत यह गन्ना मिलों को दिया है इसलिए उन्हें 240 रूपये प्रतिकुन्तल का मूल्य दिलाया जावे। इस पर हाईकोर्ट ने 10 फरवरी 2012 और सुप्रीम कोर्ट ने 20 अपै्रल 2012 को सरकार को आदेश दिया कि 7 मई, 7 जून व 7 जुलाई 2012 तक तीन बराबर किस्तों में किसानों का 5400 करोड रूपये दिलाया जावे। एक भी किस्त टूटने पर मिलों के खिलाफ प्रदेश सरकार कार्यवाही करे। पत्र में लिखा गया कि आदेश के बावजूद सभी 124 मिले दूसरी किस्त का भुगतान नहीं कर पायी और राज्य सरकार ने उनके विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की।
जबकि दूसरी ओर सोसायटी और बैंकों से कृषि ऋण लेने वाले किसानों की आरसी लगातार काटी जाती रही जबकि उनका भुगतान चीनी मिलों पर बकाया था। इस मामले को लेकर वीएम सिंह ने फिर इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की और 6 अगस्त 2012 को आदेश प्राप्त किया कि प्रदेश के किसी भी किसान के  कृषि ऋण पर तत्काल प्रभाव से रिकवरी करने पर रोक लगा दी जाये।
पत्र में लिखा गया कि उपरोक्त सभी कार्यों को कराने में प्रदेश सरकार विफल रही है वह उच्च और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन भी नहीं कर पायी हैं।
इसलिए प्रदेश सरकार के विरूद्ध अपनी नाराजगी व अविश्वास प्रकट करते हुए राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन ने निर्णय लिया है कि वह गन्ना संस्थान लखनऊ में आयोजित होने वाली सुरक्षण बैठक का बहिष्कार करेगी। ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि आम किसान को लग रहा है कि प्रदेश सरकार किसान हित में कोई फैंसला करने के स्थान पर चीनी मिल मालिकों के स्वार्थों की पूर्ति के लिए ही वचनबद्ध बनी हुई है।
सरकार की इन किसान विरोधी नीतियों का विरोध करने के लिए राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन 16 सितम्बर को मेरठ के किला परीक्षितगढ में एक विशाल महापंचायत का आयोजन कर रहा है। जहां भविष्य के आंदोलनों पर विचार किया जायेगा और नये आंदोलनों की नींव रखी जायेगी।

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